माता कालरात्रि (विजात छंद)
भयानक रूप धरकर माँ।
गदह का पीठ चढ़ाकर माँ।
पधारीं आज सब देखो।
नजर चरणा सभी लेखो।।
कहाती काल रात्रि माँ।
शुभानी वर प्रदात्री माँ।।
गले नर मुण्ड की माला।
वदन पूरा लगे काला।।
बिखेरी बाल मुखड़े पर।
डरे सब लोग देखे सर।।
उगलती आग सांसों से।
गरम वायु उच्छवासों से।।
लगाओ भोग गुड़ का जब।
खुशी से झूमती माँ तब।।
सभी को वर बहुत देती।
सभी संताप हर लेती।।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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