यशोदा के लाल
एक बार यशोदा माता से,बोले कृष्ण कन्हाई।
मैं जाऊंँगा मथुरा -नगरी,सुन ले यशोदा माई।
बालेपन में तेरी गैया, थी कितनी मैंने चराई।
बहुत तुम्हारे मनुहार में, बंसी भी मैंने बजाई।
मुझको कभी भी तूने, माता दिया नहीं मलाई।
खूब खिलाई दाऊ को,मुझे अंगुली नहीं चटाई।
तेरे दो-रंगे व्यवहार का,मैं समझ गया चतुराई।
दाऊ तेरा अपना पूत है,पर मैं हूँ संतान पराई।
एक बार माखन की हांडी,जब थी मैंने चुराई।
कान खींच कर तूने मारा, कितनी नाच नचाई।
मेरी बंसी की प्रेम-धुन,मांँ कभी न तुझको भाई।
हुई बावरी यशोदा मैया, कान्हा को गले लगाई।
बोली मत जा तू वृंदावन,आ खा ले खूब मलाई।
बाबा नंदजी पिता हैं तेरे,बलवीर है अपना भाई।
तू मेरा ही अपना पुत्र है,और मैं ही हूंँ तेरी माई।
अपनी प्यारी ममता की, माता देने लगी दुहाई।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
No comments:
Post a Comment