माटी का दीया
माटी की गुथाई करते समय फिसलकर गिर जाने के कारण पिताजी के हाथ में चोट लग गयी और पिताजी चाक चलाने में असमर्थ हो गये।नेहा ने अपने भाई बहनों को अपनी एक योजना बताई। नक्काशी दार सांँचों में तो दीये बनाये जा सकते हैं।सभी भाई-बहनों ने मिलकर ढेर सारे दीये, खिलौने और मूर्तियांँ बनाये। उन्हें पकाकर रंग-रोगन कर सजाया और बाजार में बेचने बैठे।खिलौने और मूर्तियांँ तो जल्द ही बिक गये, लेकिन दीये........।जब बाजार में चीन-निर्मित बिजली से जलने वाले सुंदर दीपों की लड़ियांँ उपलब्ध है तो भला इन माटी के दीयों को कौन पूछता है ? तेल-बाती डालकर जलाओ और जरा-सी हवा तेज चली कि बुझ गया।भला इन झंझटों में कौन पड़े।
संध्या अपने परम यौवन प्राप्त कर चुकी थी। अंधकार ने अपना साम्राज्य स्थापित करना प्रारंभ कर दिया। फूल-रंगोलियों से सभी लोग अपने घर सजाकर दीये जलाने और पूजन की तैयारी में लग गये। नेहा भाई बहनों को बाजार की दुकान में छोड़कर घर आ गयी। क्योंकि मांँ बीमार और पिता लाचार थे।घर में भी पूजन करना और दीये जलाने हैं।अचानक बिजली आई और जोरदार धमाके के साथ गुल हो गई।पूरा मुहल्ला अंधकार के आगोश में समा गया।यह विद्युत-ट्रासफर्मर जलने की आवाज थी। सभी जानते थे कि इस इलाके में नये ट्रांसफर लगने में पंद्रह-बीस दिनों से कम नहीं लगते। पास-पड़ोस के लोग नेहा के घर दीये लेने दौड़ पड़े कहीं सारे दीये बिक ना जायें। विद्युत के बिना तो चीन के दीये नहीं जगमगाएंगे। नेहा के घर और बाजार के सारे दीए बिक चुके थे।वह अपने माता-पिता और भाई बहनों के साथ अपने घर में लक्ष्मी जी की पूजा कर माटी के दीये जलाने और खुशियांँ मनाने में लगी थी।यह उन्हीं की कृपा थी कि उसके बनाए सारे खिलौने और दीये बिक गए।वह जोर से बोल उठी लक्ष्मी माता की जय।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
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