अत्याचार का अंत
दशहरे का समय था।श्रद्धालु गन माता की पूजा-पाठ में व्यस्त थे। दुर्गा मंडप में दुर्गा पाठ हो रहा था। फल-फूल ,माला तथा धूप- दीप से माता रानी का दिव्य मंडप आच्छादित था।कोई भी मनुष्य अनायास कलश तक जा कर पूजा-पाठ में बिघ्न ना डाले, इसके लिए मांँ की प्रतिमा के आगे बाँस का घेरा बना दिया गया था। फिर भी कुछ प्राणी ऐसे थे जिन्हें किसी प्रकार से रोका नहीं जा सकता था ।जैसे -चूहे,चीटियाँ आदि।वे जब चाहे पूजन सामग्री को गिरा देते, तोड़ देते,खा लेते तथा उठाकर ले जाते। प्रसाद चढ़ा नहीं कि चींटियों के दल ने हमलावरों की तरह आ घेरा। चूहों को फल उठाकर भागने की हड़बड़ी रहती। बताशे-मिश्री चींटियों को ज्यादा पसंद आती।कलश पर डाले गये अक्षत पर तो अपना एकाधिकार समझतीं। एक दिन की बात है चींटियों ने जब भर पेट भोजन कर लिया तो सोचा क्यों ना कुछ भोजन अपने घर भी ले जाऊंँ। लेकिन माता की पीढ़ी इतनी ऊँची थी कि चींटियों के लिए मुँह में वजन लेकर उतरना और अपने बिल तक ले जाना कठिन काम लग रहा था।अंतत: सभी चीटियों ने मिलकर विचार किया-क्यों ना हम चावल,मिश्री तथा बतासे के टुकड़ों को पहले पीढ़ी पर से नीचे गिरा दें फिर नीचे से उन्हें उठाकर बिल तक ले जाया जाएँ।यह सोंच चींटियों ने चावल को मुँह में पकड़कर नीचे गिराना शुरू किया। उनकी इस प्रक्रिया को एक चूहा बड़ी दिलचस्पी से देख रहा था।उसके मन में शरारत सुझी।उसने झट से चींटियों द्वारा गिराए गए चावल को उठाकर खा लिया। चूहे की इस हरकत से चीटियों को बहुत दुःख हुआ। लेकिन करे तो क्या ?बेचारी इस आस में चावल नीचे गिराती कि शायद चूहा चावल नहीं खाए।लेकिन चूहे को तो बहुत मजा आ रहा था ।आए दिन चूहा चीटियों को इसी प्रकार तंग करने लगा। बिचारी चींटियांँ भी कब तक सहन करतीं ? उसके अत्याचारों से परेशान होकर सभी चींटियों ने ले यह निर्णय लिया कि उस चूहे को सबक सिखाया जाए ।लेकिन अपनी तुलना उस भारी-भरकम शरीर वाले चूहे से कर घबरा उठीं। फिर भी अपनी रक्षा और न्याय लिए उन्हें कुछ तो करना ही था।एक दिन कुछ विचार कर उन्होंने मंडप के नीचे चावल नहीं गिराया ।बस प्रसाद में चढ़ने बतासे और मिश्रियाँ खाती रहीं। चूहे ने जब देखा कि मंडप के नीचे चावल नहीं गिरा हुआ है तो उसके मन में जिज्ञासा जागी कि क्या चींटियांँ किसी दूसरे रास्ते से अपना भोजन ले जा रही हैं ? यह सोच वह मंडप पर चढ़ आया। उसने देखा कि माता की प्रतिमा के सामने चढ़ाये गये प्रसाद को चीटियाँं आराम से खा रही हैं। उसके मन में शरारत नाच उठा। उसने सोचा मैं इतना बड़ा हूंँ। आखिर ये छोटी चीटियांँ मेरा क्या बिगाड़ सकतीं हैं ? यह सोच उसने झट चींटियों द्वारा खाये जा रहे बतासों को उठा लिया।फिर क्या था। चींटियांँ तो इसी ताक में थीं ही।उन्होंने एक साथ चूहे पर हमला कर दिया।उसके भारी-भरकम शरीर पर चढ़कर उसे काटना शुरू किया।चूहा दर्द से छटपटाने लगा । गुस्से में चींटियों ने उसे इतना काटा कि उसके प्राण पखेरू उड़ गये। पूजा कर रहे पुरोहित जी ने चूहे द्वारा चींटियों को परेशान करने और चींटियों द्वारा अपने अधिकारों और न्याय के लिए लड़ते देख माता के भक्तों से कहा जो कोई भी दुष्ट प्राणी माता के सामने उसके प्यारे जीवों को कष्ट देता है तो माता रानी अपने भक्तों को अत्याचारियों से लड़ने के लिए इसी प्रकार शक्ति प्रदान करती हैं।
माता रानी की जय🙏🙏🙏🙏🙏
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