सखी हमारी
बचपन की प्यारी
लगती न्यारी।
हँसी-ठिठोली
करती है मुझसे
बतिया भोली।
सखी से नाता
हर उम्र वालों के
मन को भाता।
मानो बहना
संग-संग रहना
जैसे गहना।
मन को भाती
सुख दुःख में वह
साथ निभाती।
राज जानती
मेरे मन की भाव
पहचानती।
मिल ना पाती
जब भी सखियों से
बेचैनी होती।
साथ रहती
संग-संग पढ़ती
राहें गढ़ती।
मन मिलता
जब भी है जिससे
सखी बनाती।
मन रूठे तो
सखियां ही आकर
मुझे मनाती।
सखी न छोड़ूँ
जगत से चाहे मैं
नाता जोड़ू।
सुजाता प्रिय समृद्धि
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