Friday, May 22, 2020

वो मेरी राह तकता है (गजल)

अगर बाहर मैं जाती हूँ,मेरे पीछे वो आता है,
जो रुक जाते कदम मेरे,नहीं पग वह बढ़ाता है।

वो पीछा करता नजरों से,जहाँ मैं दूर जाती हूँ,
जो मैं नजरें उठाती हूँ,नजर ना वह उठाता है ।

न जाने कैसी चाहत है ,मुझसे नजर मिलाने की,
मिलाना चाहूँ जब नजरें,तो वो नजरें चुराता है।

वो मेरी राह तकता है,खड़े होकर क़े राहों मेंं।
नजर आती हूँ जब उसको,तो झट से भाग जाता है।

कभी मन उसका रखने को,मैं जब भी पास जाती हूँ,
निकट आने के बदले में ,चला वह दूर जाता है।

भला ये खेल  नजरों का,चलेगा कब तलक यूं हीं,
ना उसको मैं हरा पाती, ना वो मुझको हराता है।
       सुजाता प्रिय'समृद्धि'

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 23 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. मेरी रचना को सांध्य मुखरित मौन में साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद एवं आभार।

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    1. बहुत-बहुत धन्यबाद दी! आभार आपका

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    1. सादर धन्यबाद भाई।

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    1. बहुत-बहुत धन्यबाद बहना।

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  6. सादर धन्यबाद सर।सादर नमन।

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