Thursday, May 14, 2020

दूर क्षितिज में

प्रथम रश्मि ले आया सूरज,
    फैलाकर किरणों के तार।
       दूर क्षितिज में फैली लाली,
            स्वर्ण-मंजूषा सा उपहार।

शाम ढली,चंदा मुस्काया,
    अब तो राज हमारा है।
        काली रात के अंधियारे में,
             हमसे ही उजियारा है।

रजनी ने ओढ़े तिमिरांचल,
     सुभग सितारें जड़े हुए।
         नन्हें-नन्हें दीप सरीखे,
             झिलमिल करते सजे हुए।

दूर कहीं है छाया बादल,
      लगता बड़ा सुहाना है।
        झूम-झूम लहराकर हँसता,
            रिमझिम जल बरसाना है।

दूर क्षितिज में उड़ते जाते,
    खग-कुल अपने पंख पसार।
        चहक-चहक कलरव करते हैं,
             पाकर क्षितिज का विस्तार।

असीम क्षितिज का है संदेशा,
    कि यहाँ कोई विराम नहीं है।
        बढ़ना है, बढ़ते जाओ तुम,
            रुकने का अब नाम नहीं है।
     .       
                     सुजाता प्रिय'समृद्धि'

12 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 18 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जी सादर धन्यबाद दीदीजी!मेरी रचना को पाँच लिकों के आनंद में साझा करने के लिए।हार्दिकआभार।

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  3. वाह सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति

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  4. वाह दीदी बहुत सुंदर रचना।
    भाषा का लालित्य आपकी रचनाओं में सहज दृष्टिगत होता है।
    सुंदर और सार्थक सृजन दीदी।

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    1. बहुत-बहुत धन्यबाद श्वेता।मेरी रचना की भाषा लालित्य एवं भावों को समझने के लिए।शुभकामनाएँ।

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  5. बेहद खूबसूरत रचना

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    1. सादर धन्यबाद सखी अनुराधा जी!

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  6. वाह! शानदार अभिव्यक्ति सखी.
    सादर

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    1. जी बहुत-बहुत धन्यबाद सखी!

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  7. वाह!!!!
    दूर क्षितिज में उड़ते जाते,
    खग-कुल अपने पंख पसार।
    चहक-चहक कलरव करते हैं,
    पाकर क्षितिज का विस्तार।
    लाजवाब सृजन...।

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  8. सादर धन्यबाद बहना!

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