Saturday, May 16, 2020

नव किसलय से भरा धरातल

नयन उठाकर देख धरा पर,
नव किसलय से भरा धरातल।
नन्हें-नन्हें पत्तों से ढककर,
लगता कितना हरा धरातल।

धरा-गर्भ में फूटे नवांकुर,
कोमल रेशमी डोर लिए।
सूरज की किरण फैली है,
आसमान में भोर लिए ।

हर्षित होकर आज वसुंधरा,
पहनी चुनरी धानी है।
किसलय का श्रृंगार रचा है,
दुनियाँ की पटरानी है।

मन के सब संताप मिटा है।
पल कितना सुखदायी है।
खुशियों से विभोर होकर,
मंद-मंद मुस्कायी है।

अब धरती का तपन मिटा है,
पुलकित होकर ली अँगड़ाई।
हरियाली है चहुँ दिशा में,
हरियाली है मन मन में छाई।
     सुजाता प्रिय

6 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१७-०५-२०२०) को शब्द-सृजन- २१ 'किसलय' (चर्चा अंक-३७०४) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  2. सादर धन्यबाद सखी अनीता जी! मेरी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा चर्चा अंक में करने के लिए।

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  3. बेहद खूबसूरत रचना

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    1. हार्दिक आभार सखी! बहुत-बहुत धन्यबाद।

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  4. बहुत खूब....,सुंदर सृजन ,सादर नमन

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  5. हृदय तल से धन्यबाद एवं आभार सखी!

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