ऐ
मनुज
तू फूल बनकर,
इहलोक को कर दो सुगंधित।
अमर धरा पर रहो सदा,
इस बाग को करके सुसज्जित।
दुर्गंध
कहीं आने पाये,
दुर्भावनाओं की कभी।
वातावरण ऐसी महकाओ,
जीव सारे हो जाये पुलकित।
दुराचरण
मैला वसन है,
खोल इसको फेक दो।
छल-कपट, फरेब से मत,
कर कभी सुख ,नाम अर्जित।
अहंकार
को तुम दूर कर ,
अंतःकरण को स्वच्छ कर,
दुर्विचारों,दुर्गुणों को,
मन से,अपने कर दो वर्जित।
फूल-सी
मुस्कान तुम,
बिखेर अपने होठ पर,
हँसो और सबको हँसाओ,
जिससे सारा जग हो जाये हर्षित।
सुजाता प्रिय
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों काआनन्द" में रविवार 15 दिसंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
612...लिहाफ़ ओढ़ूँ,तानूं,खींचूं...
जी सादर धन्यबाद भाई! मेरी रचना को पाँच लिकों के आनंद में साझा करने के लिए।आभार सहित नमस्कार।
ReplyDeleteफूल-सी
ReplyDeleteमुस्कान तुम,
बिखेर अपने होठ पर,
हँसो और सबको हँसाओ,
जिससे सारा जग हो जाये हर्षित।
बहुत सुंदर रचना ,सादर नमन आपको
शुभ संध्या सखी।सादर धन्यबाद।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना सखी
ReplyDeleteसादर धन्यबाद सखी।नमन
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