Friday, December 13, 2019

अलाव के निकट

निकट बगीचे से मंगली चाची,
सुखी लकड़ियाँ बीनकर
लायी।शाम ढली तो
वह घर के आगे,
उसे जोड़कर
अलाव
जलायी।
अलाव देखकर लक्ष्मी दादी,
लाठी टेक लपकती आई।
पारो काकी भी जब
देखी,झट से
आई फेक
रजाई।
चौका-पानी कर गौरी बूआ,
हाथ-पाँव फैला गरमाई।
टोले के बच्चों को
उसने,'पूस की
रात' कथा
सुनाई।
नेहा ,बबली ,चुन्नी , रानी,
गुड़िया लेकर दौड़ीआई।
पप्पु ,मुन्ना राजू चुन्नु ने,
चटपटे चुटकूले
खूब
सुनाई।
कल्लू चाचा बीरन दादा ने,
गाये रामायण की चौपाई।
बूआ, दादी, चाची
मिलकर,भजन
करी बड़ी
सुखदाई।
अलाव की यह सोंधी खुशबू,
हर पीढी के मन में भाई ।
ठिठुरन दूर किया
हम सबका,सर्दी
ने जब हमें
सताई।
एकता का प्रतीक अलाव,
एक सूत्र में सबको
बंधबाई।अलाव
ने सबको गर्मी
देकर,जग
हितकारी
संदेश
सीखाई।
    सुजाता प्रिय

13 comments:

  1. एकता का प्रतीक अलाव,
    एक सूत्र में सबको
    बंधबाई।अलाव
    ने सबको गर्मी
    देकर,जग
    हितकारी
    संदेश
    सीखाई।
    बहुत सुंदर सृजन ,अब वो दिन कहा मिलते हैं ,बहुत याद आती हैं वो सर्दी के दिन ,सादर नमन शुभा जी

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  2. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी! सस्नेह आभार एवं नमस्कार।

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  3. बहुत-बहुत धन्यबाद श्वेता! सोमवारीय विशेषांक के लिए मेरी रचना को साझा करने के लिए।सस्नेहाशीष।

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  4. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी

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  5. बेहद खूबसूरत रचना

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  6. एकता का सूत्र अलाव
    वाह!!!
    बहुत मनभावन सृजन।

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  7. धन्यबाद सखी।सादर नमन।

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  8. सहज सरल प्रवाह लिए सार्थक रचना।

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  9. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।सादर

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  10. अलाव
    ने सबको गर्मी
    देकर,जग
    हितकारी
    संदेश
    सीखाई।
    बहुत सुंदर सृजन

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  11. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 20 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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