न्याय-न्याय तो सब चिल्लावे,
अन्याय न कोई छोड़े रे।
मन में न्याय कोई न लावे,
अन्याय से नाता जोड़े रे।
न्याय पर चलना सभी बतावे,
उस राह से स्वयं मुख मोड़े रे।
स्वाचरण सुधार न पावे,
पराचरण पर मारे कोड़े रे।
अपना सिर तो सभी बचावे,
दूजे का सिर फोड़े रे।
न्याय तंत्र को बुरा बताबे,
लोकतंत्र को रोड़े रे।
जन जागरण तो बहुत करावे,
मन भी जगा लो थोड़े रे।
न्याय सभी को तभी मिलेगा ,
जग हित से स्वयं को जोड़े रे।
सुजाता प्रिय
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२२-१२ -२०१९ ) को "मेहमान कुछ दिन का ये साल है"(चर्चा अंक-३५५७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
जी सादर धन्यबाद।मेरी प्रविष्टि की चर्चा मेहमान कुछ दिन का ये साल है चर्चा अंक में करने के लिए हार्दिक आभार।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२२ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सोमवारीय विशेषांक में मेरी रचना को साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद स्वेता।
ReplyDeleteसुजाता जी, यह क्या कह दिया आपने -'जग-हित'? राजनीतिक शब्दकोश में से यह शब्द सदा-सदा के लिए हटा दिया गया है अब इसके स्थान पर आधी हिंदी और आधी अंग्रेज़ी वाला शब्द 'जग-हिट' आ गया है और वही हमारे नेताओं को भा गया है.
ReplyDeleteसादर धन्यबाद।बिलकुल सच्चाी बात कहे सर। लेकिन क्या करें हम भी अपने स्वभाव से मजबूर हैं।
ReplyDeleteजन जागरण तो बहुत करावे,
ReplyDeleteमन भी जगा लो थोड़े रे।
न्याय सभी को तभी मिलेगा ,
जग हित से स्वयं को जोड़े रे।
बहुत खूब... ,सादर नमन सुजाता जी
सादर धन्यबाद कामिनी जी।नमन
ReplyDeleteन्याय सभी को तभी मिलेगा ,
ReplyDeleteजग हित से स्वयं को जोड़े रे।
बहुत खूब...