पाँच पाठ जीवन के पढ़ लो,
जनम सफल हो जाएगा।
दुःख वेदना दारिद्र कभी भी,
पास न तेरे आएगा।
प्रथम पाठ संयम का भाई,
हँसकर इसको गले लगाओ।
मन में अधीरता जब भी आए,
झट से उसको दूर भगाओ।
धैर्य धरो तो धाम तुम्हारा,
चलकर तुझ तक आएगा।
दया का दूजा पाठ रे प्यारे,
प्राणि जन पर दया करो।
निर्दयता को दूर भगाकर,
प्रेम परस्पर सदा करो।
सबसे बढ़कर प्रेम दान है,
तुझे भी मिलता जाएगा।
है तीसरा पाठ क्षमा का,
क्षमाशील बन दिखलाओ।
क्षमा प्रार्थी के अपराधों को।
कभी न मन में तुम लाओ।
अनजाना अपराध भी तेरा,
क्षम्य सदा हो जाएगा।
चतुर्थ पाठ त्याग का है,
जीवन में कुछ कर ले त्याग।
नंगे को कुुछ वसन दे अपना,
भूखे को भी दो रोटी -साग।
जितना दोगे भंडार तुम्हारा ,
उतना ही बढ़ता जायेगा।
पंचम पाठ मनोबल का है,
मन को सुदृढ़ बनाते जाओ।
दृढ़ विश्वास जगाकर मन में,
ऊँचे तक तुम चढ़ते जाओ।
सदा सफलता स्वयं तुम्हारे,
कदम चूमने आएगा।
सुजाता प्रिय
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 19 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर नमन दीदीजी।सांध्य दैनिक मुखरित मौन में मेरी रचना साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद एवं आभार।
ReplyDeleteक्षमा ,दया ,त्याग ,सयम अगर ये चार गुण आगये तो आत्मबल स्वतः बढ़ जाता हैं ,बहुत सुंदर सीख देती रचना सुजाता जी ,सादर नमन
ReplyDeleteधन्यबाद सखी।सादर नमन।
Deleteवाह!सखी दया, संयम, क्षमा, त्याग, मनोबल जैसे पंचशील जैसा सुंदर सार्थक शाश्र्वत चिंतन।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन।
बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।सादर
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