रूख बदला न करो कभी मुझसे ऐ जानम,
बेरुखी में भी प्यार का अहसास होता है।
नजरों से ओझल कभी हो जाते हो तुम,
मेरे मन में तेरे बसने का आभास होता है
चिलचिलाती धूप में चलती तिलमिलाती हूँ,
तेरा साया , छाया बनकर मेरे पास होता है।
हवा का झोंका जब आँचल मेरा उड़ाता है,
मेरे दामन को ढकता तेरा बाहुपास होता है ।
जब भींगाती है बरसात की ये चुलबुली बुंदें,
भींगे बालों को झटकने का तेरा हास होता है।
अनगिनत नजरें निहारा करती हैं मुझको ,
तेरे नजरों का वो चुराना भी खाश होता है।
जब भी मैं कभी गीत कोई गुनगुनाती हूँ,
संग तेरे सुर मिलाने का भी भास होता है।
सजाती हूँ गजरा ,मैं अपने जूड़े में कभी,
उसकी खुशबू में बस तेरा सुबास होता है।
जब कभी झाकूं मैं मन मन्दिर में तुम्हें,।
दिल के हर कोने में तेरा ही बास होता है।
सुजाता प्रिय
No comments:
Post a Comment