Tuesday, May 7, 2024

पावन कर्म (कविता)

पावन कर्म
माता-पिता और गुरुजनों की,
                सेवा करना पावन कर्म।
श्रेष्ठ जनों का कहना मानो,
              यह भी होता पावन कर्म।

जिनको पथ का ज्ञान नहीं है,
            उनको पथ पर लाओ तुम।
भटके जन को राह दिखाना,
                भी होता है पावन कर्म।

जिसके सिर पर छत न छप्पर, 
                उसे छाया में ले आओ।
निराश्रितों को आश्रय देना 
                भी होता है पावन कर्म।

काँपते जन को कमली दो,
               और नंगे जन को धोती।
निर्वस्त्रों को वस्त्र पहनाना 
                भी होता है पावन कर्म।

चींटी को कुछ आटा दे दो,
                और चिड़िया को दाना,
भूखे जीवों को भोजन देना,
                भी होता है पावन कर्म।

जो दुःख पा अधीर हुए हों,
             उनको थोड़ा धीरज दे दो,
दुखियारों पर दया दिखाना 
                भी होता है पावन कर्म।

मक्कारी से दूर रहो तुम, 
             झूठ कभी मत अपनाओ,
सदा सत्य का साथ निभाना 
                भी होता है पावन कर्म।

हिल मिल खाओ,और खेलों, 
              भाई और संगी-साथी से।
मेल-मिलाप बढ़ाकर रखना 
                भी होता है पावन कर्म।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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