Sunday, January 7, 2024

स्वीकार (लघुकथा)

स्वीकार (लघुकथा)

आने वाले शाम को सलाम..
जाने वाले शाम को सलाम..
    के धुन पर परिवार के सभी लोग झूम रहे थे।तभी बहू ने पेट पकड़ते हुए अपने कमरे की ओर कदम बढ़ाया।सभी के पांव थम गये।
बहू के चेहरे पर पीड़ा के भाव देख लक्ष्मी देवी को समझते देर नहीं लगी कि नववर्ष में परिवार के नये सदस्य का शुभागमन होने वाला है।समय पूर्ण हो चुका है। खुशी के मारे उसके कमरे की ओर चल पड़ी।हाल जान तुरंत एंबुलेंस बुलाने का आदेश दिया और नर्सिंग होम जाने की तैयारी करने लगी।
अस्पताल में बहू को जैसे ही प्रसुति-कक्ष में ले जाया गया, उन्होंने अपने हाथ जोड़त कर ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा -"अबकी बहू के गोद में बेटा दे दो,तो बड़ी कृपा होगी।
बहुत आस लगाए बैठी हूँ।पोती के साथ खेलने वाला एक भाई आ जाए यही कामना है।"
केशव जी ने आगे बढ़कर कहा-"पहले तुम बहू को सम्हालो राघव की माँ ! भगवान का भेजा हुआ जो आ रहा है उसे हृदय से स्वागत और स्वीकार करो।पोता-पोती सब बराबर है।हमारी पोती को भाई हो या बहन, उसके साथ खेलने वाला तो होगा ही।"
   उसी समय नवजात शिशु के रोने की आवाज सुनाई दी।नर्स ने आते हुए कहा -"आज एक जनवरी को एक बजकर एक मिनट में मुन्नी की बहन नन्हीं आई है।"
मुन्नी तो कुछ समझ नहीं पायी। परिवार के सभी लोग फिर से एक बार खुशी से झूम उठे।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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