राम-राज्य की कामना
अगर कहीं मिल जाएँ राम,तो मैं ऐसा वर माँगू।
परस्पर प्रेम जहाँ होता था, उनके घर-सा घर माँगू।
चौदह वर्ष वनवास मिले,तब भी मन विचलित न हो।
पिता की आज्ञा पालन करें, कभी मन चिंतित न हो।
विमाता की निर्णय को भी ,रखूँ अपने सिर-आंँखों।
रख चरण-रज शीष सदा,सह लूँ कष्ट वन में लाखों।
सदा साथ हो लक्ष्मण भाई,संकट आँधी तूफान में।
जीवन-साथी सीता संग हो,वन के खुले आसमान में।
भरत रक्षा करे राज्य का, शत्रुघ्न भातृत्व भावों का।
फूट नहीं हो भाई -भाई में, दूरी हो सभी दुर्भावों का।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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