गज़ल (विधाता छंद आधारित)
गरीबों की कमाई पर,जमाने की नजर क्यों है।
जरा इतना बता कोई,जमाना बेअसर क्यों है।
भरें वो जान दे पानी,उसे तुम शान से पीते,
मगर तुम शान को तजकर,न बनते हमसफ़र क्यों है।
अगर हम दे नहीं सकते किसी को भी दमड़ी,
किसी के हाथ की कौड़ी,झपटने की समर क्यों है।
गरीबी आज है उनमें,फकीरी है जमाने में,
कभी नजरे घुमा देखो,जमाना बेनजर क्यों है।
अभी सोचो सभी मन में,गरीबी रोग ना कोई,
अमीरों का लहू इतना,हुआ अब बेअसर क्यों है।
सुनों बुजदिल हमारी भी, जहांँ में राह काफी है,
इबादत आज तू तज कर,पकड़ते यह डगर क्यों है।
करो विश्वास खुद पर तुम, खजाना लूट मत लाओ,
हटा लो हाथ तुम अपने,खड़ा तुम इस कदर क्यों है।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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