कोकिल तू मेरे बाग़ में आती हो क्यों नहीं?
पंचम सुरों की राग सुनाती हो क्यों नहीं ?
आया और चला जा रहा है अब वसंत-
वसंत का आनंद ले जाती हो क्यों नहीं ?
कोकिल ने कहा-अब हमें मिलता नहीं है बाग।
जिसके तरु की डाल पर हम बैठ छेड़े राग।
मानव तू बोलो बाग लगाते हो क्यों नहीं ?
पर्यावरण को स्वच्छ बनाते हो क्यों नहीं ?
कोकिल तू मेरे बाग़ में नित आया करो।
सुरीली तान भरी मीठे गीत गाया करो।
बिन बाग वाले को तू लुभाती हो क्यों नहीं ?
तुम उन रूठी हो ये बात बताती हो क्यों नहीं ?
कोकिल ने कहा-जहां से सारे पेड़ कट रहे।
जग से जंगल के नामों-निशान हट रहे।
मानव तू बोलो पेड़ लगाते हो क्यों नहीं ?
पशु-पक्षियों का घर बसाते हो क्यों नहीं ?
मानव ने कहा-मानव को नहीं हैं पेड़ों से प्यार।
समझ न पाते पेड़ों से ही रहेगा सुखी संसार।
जाने प्रकृति से संतुलन बनाते हैं क्यों नहीं ?
धरती पर हरियाली फेलाते हैं क्यों नहीं ?
कोकिल ने कहा-क्यों न समझते पेड़ों की महत।
पेड़ों के बिना ना रहेगा यह जीव-जगत।
जग वालों को यह बात बताते हो क्यों नहीं?
जीवन का यह राज समझाते हो क्यों नहीं ?
सुजाता प्रिय 'समृद्धि' स्वरचित , सर्वाधिकार सुरक्षित
कोकिल ने कहा-क्यों न समझते पेड़ों की महत।
ReplyDeleteपेड़ों के बिना ना रहेगा यह जीव-जगत।
जग वालों को यह बात बताते हो क्यों नहीं?
जीवन का यह राज समझाते हो क्यों नहीं ?
वाह सुंदर संवाद सखी | आखिर ये पक्षी जाएँ भी तो कहाँ | कोकिल को सवाल उठाने और इंसान को चेताने का पूरा हक़ है | भावपूर्ण रचना के लिए बधाई सखी सुजाता जी |
मेरी छोटी सी बगिया में आम पेड़ की डाली पर बैठ कोयल कूक थी है तो पड़ोसन कहती हैं आपके पेड़ पर यह रोज आकर कूजती है।तब मेरे मन में बस यही भाव उठता है। जहां पेड़ रहेगा वहीं न वह बैठकर गाएंगी।
ReplyDelete