वसंत के मौसम में मुस्काते हैं फूल सभी,
तुम ग्रीष्म में खिलखिला कर हंसते हो।
जब बंद हो जाता है फूलों का खिलना,
तो तुम फिजा में बहार बन चमकते हो।
मुरझाते फूलों हंसने के लिए प्रेरित कर,
तुम चुल्हे की आग की तरह सुलगते हो।
क्या लू के थपेड़े से आक्रोशित होकर,
लोहार की भट्ठी की तरह धधकते हो।
विषमताओं से लड़ना कोई तुमसे सीखे,
कड़कती धूप में किस कदर दमकते हो।
सूरज से प्रतिशोध के लिए कृत-संकल्प,
चटख लाल रंग लेकर सदा ही दहकते हो।
चुनर का सुंदर-सुर्ख चटकीला रंग लेकर,
नवोड़े के अल्हड़ पल्लू बन बहकते हो।
रमनियों के पांव में आलता लगाने के लिए,
तुम झड़-झड़कर तमाम राहों में बरसते हो।
गुलाब की भीनी पंखुड़ियों के मुरझाने पर,
अपनी लाल पंखुड़ियों को यहां परसते हो।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
मुरझाते फूलों हंसने के लिए प्रेरित कर,
ReplyDeleteतुम चुल्हे की आग की तरह सुलगते हो।
क्या लू के थपेड़े से आक्रोशित होकर,
लोहार की भट्ठी की तरह धधकते हो।---गहरी रचना...।
बहुत खूबसूरत रचना । गुलमोहर भी कवियों का प्रिय विषय है
ReplyDeleteसादर धन्यवाद
Deleteरमनियों के पांव में आलता लगाने के लिए,
ReplyDeleteतुम झड़-झड़कर तमाम राहों में बरसते हो।
गुलाब की भीनी पंखुड़ियों के मुरझाने पर,
अपनी लाल पंखुड़ियों को यहां परसते हो।
बहुत खूब सखी | गुलमोहर पर गुलमोहर सी सुंदर , मधुर रचना |
सादर आभार सखी!
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