Monday, October 19, 2020

कोरोना काल का दर्द

हाल बड़ा बेहाल है।
हम गरीब फटेहाल हैं।

विपद पड़ी बड़ी भारी।
फैली है यह महामारी।

घर में रहना लाचारी है।
छा गई बेरोजगारी है।

अपने छोटे-से गाँव में।
बरगद पेड़ की छाँव में।

खेल रहे लूडो-ताश है।
मन हमारा उदास है।

बड़ी मुसीबत झेल रहे।
मन बहलाने  खेल रहे।

कब कोरोना जाएगा।
तब-तक हमें सताएगा।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
  स्वरचित ,मौलिक

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