हाल बड़ा बेहाल है।
हम गरीब फटेहाल हैं।
विपद पड़ी बड़ी भारी।
फैली है यह महामारी।
घर में रहना लाचारी है।
छा गई बेरोजगारी है।
अपने छोटे-से गाँव में।
बरगद पेड़ की छाँव में।
खेल रहे लूडो-ताश है।
मन हमारा उदास है।
बड़ी मुसीबत झेल रहे।
मन बहलाने खेल रहे।
कब कोरोना जाएगा।
तब-तक हमें सताएगा।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित ,मौलिक
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