Saturday, August 8, 2020

अहिंसा परमों धर्मः ( लघु कथा )

भगवान बुद्ध गृह त्याग चुके थे।संसार के प्राणियों के दुःखों का कारण व उसका निदान ढुंढते हुए एक उपवन में जा बैठे।निकट गाँव के लोगों ने उन्हें देखा तो गाँव के लोगों की खुशहाली एवं सुखी जीवन की कामना के लिए अपने द्वारा किए जा रहे सामुहिक पूजा में उन्हें आमंत्रित किया ।
भगवान बुद्ध ने उनका आमंत्रण स्वीकार कर लिया।निश्चित समय पर वे पूजा स्थल पर उपस्थित हो गए।सभी ने आकर उनका स्वागत-सत्कार किया और ऊँचे स्थान पर बैठाया।
वहाँ के लोगों के सहयोग एवं शांति पूर्ण व्यवहार से वे बड़े प्रभावित हुए।उन्होंने देखा हवन-कुण्ड के चारो ओर केले तथा अन्य बृक्षों को काटकर सुंदर और आकर्षक तोरणद्वार बनाकर मनमोहक सजावट किया गया है।एक ओर बहुत सारे लोग पंक्तिबद्ध खड़े हैं।
बुद्ध ने पूछा-क्या वे प्रसाद ग्रहण करने के लिए वहाँ खड़े हैं?
वहाँ खड़े पुजारीजी ने बताया- वे बलि दिलबाने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।
बुद्ध ने पूछा- ये किन की बलि देंगे।
पुजारीजी ने एक ओर लकड़ियों और रस्सियों से बने बाड़े की ओर दिखाते हुए कहा- उन जानवरों तथा पक्षियों की।
भगवान बुद्ध ने देखा,बाड़े में गाय, भैंस ,भेड़ ,बकरे,कबूत्तर इत्यादि पशु-पक्षी बँथे थे।
बुद्ध ने पूछा- इन पशु-पक्षियों की बलि देने से तुमलोग को क्या मिलेगा।
पुजारी जी ने खुश होते हुए कहा-यह हमारा धर्म है।
भगवान बुद्ध मुस्कुराते हुए बोले- यही तो हम मानवों की भूल है।हम एक प्रबुद्ध और श्रेष्ठ प्राणि होकर भी अन्य जीवों के प्रति हिंसा का भाव रखते हैं।हिंसा किसी भी स्थिति में मानवों का धर्म नहीं हो सकता।आपलोगों के आत्मीय भावों को देख मैं बहुत प्रसन्न हुआ।लेकिन किसी ने यह सोंचा है कि जगह-जगह पूर्ण बृक्षों को काटकर जो सजावट की गई है इससे प्राकृतिक वनस्पत्तियों की कितनी हानि होगी ?यह कौन- सा धर्म है, कैसी पूजा है ? इस प्रकार सभी जीव-जन्तु एवं पेड़ -पौधे नष्ट हो जाएँगे। जो मानव किसी अन्य बेवस लाचार और निरीह प्राणियों के प्रति हिंसा का भाव रखते हैं, वे अन्य मानवों तथा परिवार-रिस्तेदार के प्रति भी हिंसक हो सकते हैं।इसलिए आप लोगों  जिस प्रकार मानवों के साथ मित्रवत एवं सौहार्दपूर्ण व्यवहार रखते हैं,उसी प्रकार सभी जीवों के प्रति प्रेम और दया का भाव रखें।बलि देने से आपका जीवन कभी भी सुखमय नहीं हो सकता।आपका जीवन सुखमय हो सकता है अहिंसा को अपनाने से।'अहिंसा ही हम मानवों का परम धर्म है। हिंसा नहीं।'
पुजारीजी ने उन्हें नतमस्तक होकर प्रणाम किया।
भगवान बुद्ध ने देखा- सभी लोग बाड़े में बँधे पशु-पक्षियों को बंधन- मुक्त कर रहे थे।
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
      स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

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