मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया।
बेफिक्र दिन-रात बिताता चला गया।
पहनने को कपड़े नहीं,तो कोई गम नहीं।
मुझे कोई गम नहीं,मुझे कोई गम नही।
मै बोरियों की शर्ट बनाती चला गया।
पैसे नहीं हैं जेब में तो कोई गम नहीं।
मुझे कोई गम नहीं,मुझे कोई गम नहीं।
मैं दूसरों की जेब उड़ाता चला गया।
पास नहीं है बाइक तो कोई गम नहीं।
मुझे कोई गम नहीं,मुझे कोई गम नहीं।
मैं दूसरे का बाइक चलाता चला गया।
हॉर्न नहीं है बाइक में तो कोई गम नहीं।
मुझे कोई गम नहीं, मुझे कोई गम नहीं।
मैं चम्मच से थाली बजाता चला गया।
दोस्त नहीं हैं पास में तो कोई गम नहीं।
मुझे कोई गम नहीं, मुझे कोई गम नहीं।
मैं मवालियों को दोस्त बनाता चला गया ।
भोजन नहीं है पास में तो कोई गम नहीं।
मुझे कोई गम नहीं, मुझे कोई गम नहीं।
मैं लंगर में लाइन बनाता चला गया।
रहने को घर नहीं है तो कोई गम नहीं।
मुझे कोई गम नहीं, मुझे कोई गम नहीं।
मैं मंदिरों में रात बिताता चला गया।
सुजाता प्रिय, राँची
०७.०४.२०२०
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुघवार 08 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर धन्यबाद सर! मेरी रचना को साझा करने के लिए।
Deleteपाँचवी लाईन: बनाता कर लीजिये। सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteजी सर बहुत-बहुत धन्यबाद।सादर नमन।
Deleteवाह सखी , मधुर रचना ! काश जीवन इतना आसान होता !!!!!
ReplyDeleteतो सभी लोग इतने ही बुद्धीमान और बेफिक्र होते।
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