बड़ी ही दुखित-पीड़ित और बुरी दसा में नारी हैं।
हाँ - हाँ हम पुरुष - प्रधान समाज की मारी हैं।
तूने कोख में हमको मारा।
जनम पे जिन्दा फेका गाड़ा।
रख भी लिए तो जैसे हम तेरी लाचारी हैं।
हाँ हम पुरुष-प्रधान समाज की नारी हैं।
हमारे जनम पे शोक मनाते।
संतति कहने में शर्माते।
तेरा वंश बढ़ाने की हम ना अधिकारी हैं।
हाँ हम पुरुष-प्रधान समाज की नारी हैं।
भैया-सा हमको नहीं पढ़ाया।
पर घर भेज किया पराया।
गौ-सा दूसरे खूटे बाँधा हम बेचारी हैं।
हाँ हम पुरुष-प्रधान समाज की नारी हैं।
दहेज की खतिर रोज सताते।
अग्नि में जिन्दा हमें जलाते।
यह न सोंचा तेरे घर की हम रखबारी हैं।
हाँ हम पुरुष-प्रधान समाज की नारी हैं।
बनते कभी नहीं हमारे रखवाले।
हमारी अस्मत पर तू डाका डाले।
न थमती शिलशिला हर काल में यह जारी है।
हाँ-हाँ हम पुरुष-प्रधान समाज की नारी हैं।
सुन पुरुष तू जनम हमीं से पाते।
पढ़-लिख जग में पहचान बनाते
अंत समय में हम तो लगते तुझको भारी हैं।
हाँ-हाँ हम पुरुष-प्रधान समाज की नारी हैं।
सुजाता प्रिय
सुन पुरुष तू जनम हमीं से पाते।
ReplyDeleteपढ़-लिख जग में पहचान बनाते
अंत समय में हम तो लगते तुझको भारी हैं।
हाँ-हाँ हम पुरुष-प्रधान समाज की मारी हैं
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,सादर नमस्कार सुजाता जी
बहुत-बहुत धन्यबाद कामिनी जी ।इस अभिव्यक्ति को समझने महत्व देने के लिए।
ReplyDelete