जन्म-मरण के ,
कालचक्र में,
फँसा हमारा जीवन है।
काम-क्रोध की ,
पहन चोलना,
लोभ-मोह का बंधन है।
अहंकार वश ,
रोग ग्रस्त है,
आधि-व्याधि दुःख दंशन है
शान-घमंड में ,
बीता जीवन,
छल-कपट का अंतिम इंधन है।
ईर्ष्या-द्वेष की,
चिता जली है,
झुलस रहा अब तन-मन है।
सुजाता प्रिय
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