Thursday, August 14, 2025

जय श्री कृष्ण ( कृपाण घनाक्षरी)

दयामय तारो- तारो।
     केशव  हमें  उबारो।
         जीवन आज सवारो।
             विकल है  अंतर्मन ।

              मैं तो हूंँ तेरी दासी ।
       तेरे दर्शन की प्यासी।
    बैठी हूंँ आज उदासी।
तड़पता    मेरा  मन।

मन के क्लेश मिटा दो।
    संकट  से  तू  बचा दो।
        बेड़ा को पार लगा दो। 
           बिखर  न  जाए  धन।

             सुनो अब अंतर्यामी।
         तुम्हारी मैं अनुगामी ।
    तुमहो सब के स्वामी।
बचाओ अब  जीवन।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

जय गणपति (विजया घनाक्षरी)

गणपति  को  नमन।
    कार्तिकेय को नमन।
        मांँ पार्वती को नमन।
            गौरी पति को नमन।

हरिविष्णु  को नमन।
    मात लक्ष्मी को नमन।
        सरस्वती  को   नमन।
            चक्र - ब्रह्म को नमन ।

रामचंद्र   को   नमन।
    सीता माता को नमन।
        लखन  जी  को नमन।
            हनुमान    को   नमन ।

बालकृष्ण को नमन।
    राधा प्यारी को नमन।
        गोप- गोपी को नमन।
            भक्त- लोग को नमन ।
           
                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

जीवन संदेश

वर्तमान में जी लो भाई बीते पल न याद करो
भावी दिन की चिंता में तुम समय नहीं बर्वाद करो।
माना बचपन के दिन थे प्यारे बहुत मौज हम करते थे।़ खेल -कूद कर समय बिताते खूब चौकड़ी भरते थे। बचपन बीता आई जवानी इसको तुम आवाद करो।
भावी दिन की चिंता में...............
देख जवानी लेकर आया बल-बुद्धि-विश्वास नया।
बाजू में ताकत,मन में हिम्मत,दिल में है उल्लास नया।
पराक्रम ओ हिम्मत से तुम
भावी दिन की चिंता में................
वृद्धावस्था से मत घबराओ इसमें भी है मौज बड़े ।कहानियां सुनने आएंगे नाती-पोतो की फौज बड़ी ।
उनके संग में बचपन जी लों जवानी को भी याद करो। भावी दिन की चिंता में,
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, August 13, 2025

शिव -पार्वती (चौपाई)

बैठी शिव संग पार्वती माँ। हरती सब की मूढ़ मति माँ।।
हाथ जोड़कर भक्त खड़े हैं। नतमस्तक ले आस खड़े हैं।।
हे शिव शंकर हे बम भोला। आज आइए मेरे टोला ।।
जग प्राणी के कष्ट मिटाने ।जग के सब संताप हटाने ।।
त्राहिमाम करता जग सारा। चहुं ओर फैला अँधियारा।।
हर-हर-हर भोले त्रिपुरारी। सब संकट तुम हरो हमारी ।।
दया करो तुम हे नगेश्वर। हे शिव शंकर हे परमेश्वर।।
 आई जग में विपदा भारी। त्रस्त है जिससे दुनिया सारी।।
पीकर तूने विष का प्याला । सारे जग का बन रखवाला।।
आज नाथ तू हमें बचा लो ।सारे दुख को दूरभाग दो ।
क्षमा करो अपराध हमारा। भूल-चूक जो भी हो सारा।।
 शिव बोले तुम सुनो भवानी।सारे जग की तुम हो रानी।।
 सुनो सुनो हे शैल किशोरी ।तुम तो मन की हो अति भोरी।
चल भक्तों की शुद्ध-बुद्ध लेने। सुख औ समृद्धि उनको देने।।
 यह जग है मेरी ही माया। हमने रची जीव की काया।
हमको इनकी रक्षा करना। इनके सब कष्टों को हरना।।

शिव दोहे

शिव देवों के देव हैं, चरणों में प्रणाम ।
हर हर बम-बम बोलकर,जपते जाओ नाम ।।

सबके ये संकट हरे,सबके पालनहार।
जग वालों पर वे सदा,करते हैं उपकार।।

मस्तक पर है चंद्रमा,जटे गंग की धार।
बाघम्बर ओढ़े बदन,गले सर्प की हार।।

एक हाथ त्रिशूल है,कमंडल दूजे हाथ ।
नतमस्तक होकर सदा,भक्त झुकाते माथ।।

मंदिर में विराजते,माँ गौरी के संग। 
सारा जग हैं घूमते, चढ़ बसहा के अंग।।

खाते भांग सदा चबा,लगाते हैं विभूत।
हैं कार्तिक और गणपति, दोनों इनके पूत।।

आदि औ अंत रहित हैं,महिमा अपरंपार।
 सृष्टि रचैया आप  हैं ,मान रहा संसार ।।

परमेश्वर व परमपिता,पर हित परमानंद।
आपके चरण में प्रभो,सबको है आनंद ।।

आपकी भक्ति की सदा,मन में इच्छा प्रबल।
जग की रक्षा कीजिए, जीव हैं सभी विकल।।

 डमरू आप बजाइए, नाद उठे सब ओर।
सब जन हर्षित हो यहांँ, नाच उठे मन मोर ।।

हे शंकर कैलाशपति, हे गौरी के नाथ।
हमारे गृह पधारिए, कार्तिक-गणपति साथ।।
                       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, August 12, 2025

चोर

बच्चों की उपस्थिति लेते ही कक्षाचार्य जी ने सभी बच्चों को अपने गृहकार्य की पुस्तिका जमा करने को कहा। रिंकू अपनी पुस्तिका के साथ एक सुंदर कलम  लेकर आगे बढ़ा ।सभी बच्चे चोर-चोर के नारे लगने लगे।
     रिंकू बड़ी मासूमियत से सहमते हुए कहा -आचार्य जी! आपकी कलम मैंने चोरी नहीं की। 
     उसका सहपाठी संजीव ने कहा तुमने चोरी की थी ।तभी तों डर से कल विद्यालय नहीं आया। कल आचार्य जी ने बताया की उनकी कलम गायब है।तो हम सब समझ गए कि उसे तुमने ही गायब किया है।
       नहीं मेरे दोस्त ! मैंने कलम चोरी नहीं की आचार्य जी ने पुस्तिका जांँच के बाद मेरी पुस्तिका में  स्वयं कलम छोड़ दी थी ।और,मैं कोई भय से विद्यालय नहीं आया। बल्कि कल मेरी तबीयत बिगड़ गई थी। शाम में कुछ  ठीक लगा तब गृह-कार्य करने गया। उनकी खुली कलम मेरी पुस्तिका में रखी थी।
 मैंने मांँ को बताया तो मांँ ने कहा- इस कलम को तुम आदर के साथ आचार्य जी को दे दो। "किसी व्यक्ति का सामान गलती से भी आ जाए ,तो उसे अपने पास नहीं रखना चाहिए ।" इसलिए मैं इसे आज लेते आया ।
  कक्षाचार्य जी ने झट कुर्ते की जेब में हाथ डाला और उसका ढक्कन निकालकर  कलम में लगाया । फिर मुस्कुराते हुए कहा- चोर रिंकू नहीं बल्कि भुलक्कड़ मैं स्वयं हूँ। क्योंकि अपनी कलम कहीं भी छोड़ देता हूंँ । सचमुच यह कलम मैं इसकी पुस्तिका में छोड़ दिया था और ढूंढते रहा तुम्हारे साथ-साथ तुम्हारी मांँ को भी बहुत धन्यवाद देता हूंँ , जिन्होंने अपने बेटे को इतने अच्छे संस्कार दिए हैं कि "किसी का सामान गलती भी आ जाए तो उसे अपने पास नहीं रखना चाहिए।"
                           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

दोस्ती का फर्ज

चिड़िया औ चींटी में भाई दोस्ती थी गहरी।
एक-दूजे की रक्षा करते दोनों बनकर प्रहरी।
एक बार नदी में जा गिरी थी जब चींटी रानी।
नदी में बहुत तेज धार से, बह  रहा था पानी।
व्याकुल हो गयी चिड़िया चीटी को डूबते देख।
झट उठा एक बड़ा-सा पत्ता दी पानी में फेंक।
पत्ते पर बैठ चीटी रानी ने अपनी जान बचाई।
चिड़िया के उपकार से वह फूली नहीं समाई।
एक दिन की बात है, जंगल में शिकारी आया।
तीर चढ़ा धनुष पर चिड़िया  निशाना लगाया।
यह देख चीटी रानी अब मन- ही- मन घबराई ।
झट से जा शिकारी के पांव में, वह काट खाई।
तिलमिला उठा शिकारी,औ गया निशाना चूक।
तीर की आवाज सुन चिड़िया गई फुर्र से उड़।
                    सुजाता प्रिय 'समृद्धि'