Wednesday, November 20, 2024

सिया-राम-लखन स्वागत दीपोत्सव (मतगयंद सवैया)

सिया-राम-लखन स्वागत दीपोत्सव (सवैया) 

नाम जपो रघुनाथ भजो सब,तीर चला दस मस्तक छेदे।
काल कराल घमंड मिटाकर,जीत गए लंका गढ़ भेदे।।
पुष्पक बैठ उड़े रघुनंदन,रावण राज विभीषण को दे।
चौदह साल बिताकर वापस,आज पधारे रहे मन मोदे।।

भारत में खुशियाँ भर आबत,आज सभी मिल धूम मचाओ।
देख पधार रहे रघुबर अब,वैर हिया अब तो विसराओ।। 
देख सभी दुख दूर हुआ जन,आज सभी मिल मंगल गाओ। 
जो जन रूठ गये उनको अब,प्यार दिखाकर अंग लगाओ।। 

राम-लखन घर आकर बैठत, गीत बधाब बजे शहनाई।
ढोल बजाय सखा सब नाचत,देबत ताल घनाघन भाई।।
जीव सभी निरभीक भये अब, जीवन आज लगे सुखदाई।
धीर पधार रहा उर में अति,पीर सभी अब भाग-पराई।।

भूल गए सब भोजन-जेबन, भूल गए गृह कारज सारी।
रंग -बिरंग बधाब बजाबत,आज खुशी जग में अति भारी।
फूल बिछाकर राह सजाकर,राह बुहार रहे नर-नारी।
थाल सजाकर हाथ लिए सब,आरती थाल घुमात उतारी।।

दीप जला घर आँगन में सब,आज सभी खुश हो कर भाई। 
राम-सिया घर आज पधारे,नाचत-गाबत देत बधाई।। 
आज यहाँ सबका मन हर्षित,आज अमावस रात मिताई। 
धूम मची चहुँ ओर तभी अब,खाबत हैं सब साथ मिठाई।।
          जय सियाराम 
🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
           स्वरचित मौलिक

Friday, November 15, 2024

एकता में बल

एकता में बल

एक दिन एक शिकारी आया। 
जंगल में वह जाल  बिछाया। 
उसके ऊपर वह दाने  डाला। 
छिपकर बैठा  बन रखवाला। 
                   कबूतरों का झुण्ड तब आया। 
                  दाने देखकर  सब ललचाया।
                   कबूतरों का  राजा तब बोला। 
                   बेकार तुम सबका मन डोला। 
जंगल में अन्न कहाँ से आया। 
यहाँ किसी का छल है छाया। 
पर कबूतरों ने  बात न मानी। 
दाना खाये सब  कर नादानी। 
                  बिछे  जाल में  वे फँस चुके थे। 
                  अपराध -भाव से सिर झुके थे। 
                  कपोत राज ने फिर मुंँह खोला। 
                 बड़े प्यार से उन सबको बोला। 
एक साथ  मिल  उड़ चलें हम। 
जाल को लेकर भाग चलें हम। 
मानकर कबूतर राजा की बात। 
पहुंँच गये मुषक दादा के पास। 
                  कपोत  राज ने  कहा- मूषक से। 
                  छुड़ा दो सबको  जाल कुतर के। 
                  मुषक कुतर कर जाल को काटा। 
                  उड़ गए कबूतर कर टाटा-टाटा । 
                        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

रितिका छंद

हे पथिक चलते चलो तुम, जिंदगी के रास्ते।
मन कभी विचलित न करना, छोड़ने के वास्ते।

माना पथ मुश्किल बहुत है,पर इसे मत छोड़ना।
मुश्किलों के मुकाबले को,मुख कभी मत मोड़ना।

राह में कण्टक अगर है,रौंद कर बढ़ते चलो।
हौसला रखकर हृदय में, पहाड़ पर चढ़ते चलो।

आहत होकर ठोकरों से,हिम्मत कभी मत हारना।
हर हाल में बढ़ना तुम्हें है,मन में रख लो धारना।

मन के सारे हार होती, मन के हारे ही जीत है।
हिम्मत तुम्हारा संगी-साथी,हिम्मत ही तेरा मीत है।

तुम अगर बढ़ते चले तो,राह स्वयं मिल जाएगी।
हर मुसीबत हौसलों से, राह से टल जाएगी।

                              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, November 14, 2024

अधूरा ज्ञान

अधूरा ज्ञान 

कहा कबूतर,सुन भाई तीतर!
              पास मेरे तुम आओ ना।
कैसे घोंसला बनता है यह,
             मुझको जरा सीखाओ ना।
बोला तीतर सुनो कबूतर।
            तिनके चुन-चुनकर लाओ।
गोल-गोल सा उन्हें घुमाकर,
              एक -दूजे में अटकाओ।
थोड़ा समझकर,कहा कबूतर,
            हाँ-हाँ मैं सब समझ गया।
घोंसला पूरी कर लूंगा मैं,
              समझा आगे होगा क्या।
तिनके तीतर से ले कबूतर,
            लगा घोंसला स्वयं बनाने।
पर घोंसला बना न पाया,
          कहा तीतर को पुनः बताने।
कबूतर ने थोड़ा और बताया,
      कबूतर फिर बोला,समझ गया।
इसी तरह बार-बार पूछता,
          तुरंत कहता मैं समझ गया।
घोंसला बनाने के लिए तीतर ने,
         जब-जब उसको समझाया।
अधूरा ज्ञान पा हाँ कह देता,
         घोंसला कभी न सीख पाया।
कबूतर ही ऐसा पक्षी है जो,
           घोंसला नहीं बना पाता है।
अन्य प्राणियों के निवास में,
              वह जाकर रह जाता है।
जो जन ज्ञान अर्जित करने में,
               चित को नहीं लगाते हैं।
कभी-भी वे अपने जीवन में,
                सफल नहीं हो पाते हैं।
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, November 13, 2024

काला-गोरा

काला-गोरा

एक बार कौआ राजा के,मन में विचार एक आया। 
अपने काले तन पर कौआ,मन-ही -मन झुंझलाया।

सोच-सोच कर हार गया ! पर,हल न कोई सुझा।
राजहंस के पास जा, वह नतमस्तक  हो पूछा।

क्या राज है इसका भैया! तुम गोरा मैं काला।
मुझ पर कोई नजर न डाले,तेरा जपता माला।

सुन , कौए की बात हंस,मंद - मंद  मुस्काया।
 मीठी बोली में बड़े प्यार से,उसको यूं समझाया।

कोई राज नहीं है इसका, मैं गोरा,  तू काला।
रंग के कारण नहीं किसी का,कोई जपता माला।

तन के रंग से कोई प्राणी,भला -  बुरा नहीं होता।
मन के रंग के कारण ही केवल,यश पाता और खोता।

ईश्वर की रचना  है केवल, हर रंगों का प्राणी।
रंगो का तुम भेद भूल कर,बोलो मीठी वाणी।

मीठी बोली से काली कोयल भी, सबको सदा सुहाती।
वाणी की सुंदरता से ही,जग में पहचान बनाती।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, November 11, 2024

बोलो न

ऊँ
           द्वन्द्व 
           में हो
        तुम शायद 
      अहंकार भरा 
     मन यह तुम्हारा 
   मुझे प्रगति -प्रयास 
    के पथ पर चलने 
       की आज्ञा ही
        नहीं दे रहा 
           भय है 
         तुम्हें शायद 
     मेरा साथ छूटने का
या तुम्हारा वर्चस्व टूटने का

    सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, November 10, 2024

मैं


               मैं 
              तुम्हें 
            कभी भी 
          बुलंदियों पर 
          चढ़ने से रोक
             तो नहीं 
               पाता 
                 हूंँ।
              किन्तु 
             मुझे सदा 
          यह भय लगा 
        रहता है कि कहीं 
        ऊँची उड़ान भरने 
         हेतु तुम्हारे पर न 
            निकल जाए 
               और तुम 
                  मुझे 
               छोड़कर 
           मुझसे दूर और 
      बहुत दूर न उड़ जाओ।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'