सिया-राम-लखन स्वागत दीपोत्सव (सवैया)
नाम जपो रघुनाथ भजो सब,तीर चला दस मस्तक छेदे।
काल कराल घमंड मिटाकर,जीत गए लंका गढ़ भेदे।।
पुष्पक बैठ उड़े रघुनंदन,रावण राज विभीषण को दे।
चौदह साल बिताकर वापस,आज पधारे रहे मन मोदे।।
भारत में खुशियाँ भर आबत,आज सभी मिल धूम मचाओ।
देख पधार रहे रघुबर अब,वैर हिया अब तो विसराओ।।
देख सभी दुख दूर हुआ जन,आज सभी मिल मंगल गाओ।
जो जन रूठ गये उनको अब,प्यार दिखाकर अंग लगाओ।।
राम-लखन घर आकर बैठत, गीत बधाब बजे शहनाई।
ढोल बजाय सखा सब नाचत,देबत ताल घनाघन भाई।।
जीव सभी निरभीक भये अब, जीवन आज लगे सुखदाई।
धीर पधार रहा उर में अति,पीर सभी अब भाग-पराई।।
भूल गए सब भोजन-जेबन, भूल गए गृह कारज सारी।
रंग -बिरंग बधाब बजाबत,आज खुशी जग में अति भारी।
फूल बिछाकर राह सजाकर,राह बुहार रहे नर-नारी।
थाल सजाकर हाथ लिए सब,आरती थाल घुमात उतारी।।
दीप जला घर आँगन में सब,आज सभी खुश हो कर भाई।
राम-सिया घर आज पधारे,नाचत-गाबत देत बधाई।।
आज यहाँ सबका मन हर्षित,आज अमावस रात मिताई।
धूम मची चहुँ ओर तभी अब,खाबत हैं सब साथ मिठाई।।
जय सियाराम
🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित मौलिक