जगत जननी जगदम्बा
विधा -विधाता छंद
जगत जननी सुनो विनती,तिहारे द्वार आई हूँ।
चमेली फूल की अम्बे, बनाकर हार लाई हूंँ।।
सितारे-मोतियों से मैं,सजाई चुन्नरी तेरी।
सजा दूँ आज सिर पर मैं,लगी इच्छा यही मेरी।।
सजाऊँ मांग में टीका,लगाऊँ केश में गजरा।
लगाऊंँ माथ पर बिंदी,लगाऊँ आँख में कजरा।।
लगाऊँ भोग किसमिस का,सुगंधित खीर औ मेवा।
जलाऊँ घृत का दीपक,करूँ आठों पहर सेवा।।
उसी मंदिर सदा जाऊं, जहांँ मूरत तेरा राजे।
भजन औ आरती गाऊंँ, बजाऊँ ढोल बाजे ।।
चरण तेरे पकड़ अम्बे,नमन में हाथ जोड़ूं मैं।
मुझे वरदान ऐसा दो, ग्रहण से मुख न मोड़ूं मैं।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'