Tuesday, April 1, 2025

जगत जननी जगदम्बा (विधाता छंद आधारित)

जगत जननी  जगदम्बा 
विधा -विधाता छंद 

जगत जननी सुनो विनती,तिहारे द्वार आई हूँ।
चमेली फूल की अम्बे, बनाकर हार लाई हूंँ।।

सितारे-मोतियों से मैं,सजाई चुन्नरी तेरी।
सजा दूँ आज सिर पर मैं,लगी इच्छा यही मेरी।।

सजाऊँ मांग में टीका,लगाऊँ केश में गजरा।
लगाऊंँ माथ पर बिंदी,लगाऊँ आँख में कजरा।।

लगाऊँ भोग किसमिस का,सुगंधित खीर औ मेवा।
जलाऊँ घृत का दीपक,करूँ आठों पहर सेवा।।

उसी मंदिर सदा जाऊं, जहांँ मूरत तेरा राजे।
भजन औ आरती गाऊंँ, बजाऊँ ढोल बाजे ।।

चरण तेरे पकड़ अम्बे,नमन में हाथ जोड़ूं मैं।
मुझे वरदान ऐसा दो, ग्रहण से मुख न मोड़ूं मैं।

                        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, March 25, 2025

अंतिम प्रतिक्षा

अंतिम प्रतीक्षा 

मोबाइल से कहती थी
माँ मैं आ रही हूँ।
पहुंचती थी जब भी 
नहा-धोकर इंतजार 
करती मिलती थी माँ।
खबर आया माँ नहीं रही।
मैंने कहा आ रही हूँ।
पर रात में चलना मुश्किल 
रात की सारी गाड़ियाँ ...
सुबह पहली गाड़ी से चल
 दोपहर पहुंँच जाउँगी,
नियत समय पर पहुंँच गई,
भारी भीड़ भरी थी घर में 
भक्ति-गीतों का गायन।
बीच आंँगन में दक्षिण मुंँह 
कुर्सी पर सज-धजकर 
आंँखें मीचे बैठी, मेरी माँ 
आखिरी बार मेरी प्रतीक्षा 
कर रही थी ममत्व लिए।
लेकिन न कुछ बोल पाई 
न आशीष देने हाथ उठाई।
क्या जाने रुदन सुन रही थी 
लेकिन चुप भी नहीं करा पाई।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, March 19, 2025

स्वर्ण - विहान

हुआ सवेरा, छटा अँधेरा
     आया स्वर्ण- विहान। 
नीड़ में सोयी चिड़िया जागी, 
      गायी स्वागत- गान। 
 रंग - बिरंगे  फूल खिलें है, 
     मुख पर ले मुस्कान। 
रंग- बिरंगी उड़ी तितलियाँ,
      कर  रहे  रस  पान। 
कली- कली पर भौरें गाते। 
       छेड़ मनोहर तान।
गैया जागी बछड़ा जागा, 
    शोभ रहा है बथान। 
आओ हम सब भी कर लें, 
      कुछ नवल संधान। 

  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, March 15, 2025

वृद्ध दिवस

जय माँ शारदे 🙏🙏 

वृद्ध-दिवस (लघुकथा)

"कोई है "?
"बहू......"
"बेटी सुधी ..."
 "जरा मेरी करवट तो बदल दो ।" "एक ही करवट सोये.............."
क्या माँ ! हर समय कुछ न कुछ कहती रहती हो। तुम्हें तो पता ही है कि हमलोग वृद्धाश्रम जाने की तैयारी........"
"बेटी कोई तो मेरे पास......"
"कौन रहेगा माँ जी ?"आज वृद्ध दिवस है। थोड़ा वृद्धाश्रम के लोगों कों भोजन - वस्त्र भी तो दान कर दें।"
"थोड़ा हमें भी तो पुण्य कमाने का समय दें।"
"कुछ ओढ़ा दो बहू! ठंड......"
"कोई ठंड -वंढ नहीं...
जब से दान के कम्बल लाई हूँ।आपकी नजर.."
लेकिन यह उनके लिए है जिनके बच्चे मांँ-बाप को घर से......
आपको तो हमलोग घर में..."
"अरे जल्दी भी करो तुमलोग !
एक तो माँ को समझ नहीं है कि.......
" जब कोई अच्छे कार्य के लिए निकलते हैं तो यह अपना रोना.... ।"
और तुमलोग भी इनकी फिजूल की बातों में..........
बेटे-बहू,बेटियों को बाहर निकलते देख संकोच बस माँ कहने का साहस  भी नहीं जुटा पाई कि.......
पेट में ममोड़े उठे 
फिर...!!!
घर के मुख्य द्वार पर ताले लगाने की आवाज में माँ के  .......
फिर फाटक लगने और गाड़ी स्टार्ट..........
बेचारी माँ ने ......
अब मल के दुर्गंध और उससे हुए गीले कपड़ो के साथ ही दिन..........
किसी तरह टीवी का रिमोट हाथ लग गया।
......तिनके का सहारा ...
टीवी पर वृद्धाश्रम का समाचार... माँ वृद्धाश्रम के वृद्धों को भाँति-भाँति के भोजन- वस्त्र का दान ,प्यार दुलार मिलते देख सोच रही थी........काश..

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, March 9, 2025

हिंसक पर विश्वास नहीं



एक बार जंगल की राह में। 
एक बाघ था बंद पिंजरे में। 
राहगीरों को रोकर कहता। 
खोल दो कोई पिंजरा मेरा। 
बहुत दिनों से मैं हूँ भूखा। 
बिन खाये-ही मर जाऊंगा। 
पंडितजी को आ गयी दया। 
बोले-पर तेरा भरोसा क्या। 
पिंजरे से बाहर तू आओगे। 
झट मार  मुझको खाओगे। 
कहा बाघ विश्वास करो तुम। 
बेकार मुझसे नहीं डरो तुम। 
नहीं खाऊँगा  तुझको मार। 
मानूँगा जीवन भर उपकार।
मरते की जान तू बचाओगे। 
तुम पुण्य बहुत कमाओगे।
पंडितजी तब कर विश्वास। 
पहुँच गये  पिंजरे के पास। 
खोले पिंजरा हाथ बढ़ाकर।
निकल बाघ पिंजरे से बाहर। 
कहा-तुझे मैं अब खाउंँगा।
अपनी मैं भूख मिटाउँगा। 
पड़ी खतरे में उनकी जान। 
पछताये बाघ का कहना मान।। 
नजर घुमाई  इधर -उधर। 
एक गीदड़ आया नज़र।। 
पंडित जी ने उसे बुलाया। 
सारी बातों को समझाया।। 
बोला-गींदड़ विश्वास न होता। 
पिंजरे में भी बाघ है होता। 
शैतान बाघ ताव में आकर। 
दिखाया पिंजरे में घुसकर। 
कहा गीदड़ -पंडित जी से।
 पिंजरा बंद होता है कैसे? 
पंडितजी ने पिंजरा लगाया। 
गीदड़ को विश्वास दिलाया। 
कहा गीदड़ मुझे है विश्वास।
पिंजरे में बंद होता है बाघ। 
जैसे आपको धोखा देकर। 
निकला है पिंजरे से बाहर। 
वैसे ही इसे भी बहलाया। 
वापस पिंजरे में पहुँचाया। 
विश्वास न हिंसक पशुओं पर। 
खाएगा कैसे  धोखा देकर।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, March 7, 2025

होली गीत

जय माँ शारदे 🙏 🙏 

होली गीत होलास्टक हेतु 

मंद-मंद समीर चलत हैं,
फूल खिले कचनार सखी री ! २
फूल -फूल पर भौर उड़त हैं,
बीतत फागुन मास सखी री!२

क्षीर समुंदर विष्णु जी बैठे,
शंख में टेरे तान सखी री !
ऐसे टेर सुनाबत विष्णु,
शंख से उड़त गुलाल सखी री !
उड़कर रंग गया लक्ष्मी की चुनरी,
और रंगा गोरे गाल सखी री!
मंद-मंद समीर चलत हैं,
फूल खिले कचनार सखी री!

मधुवन में श्रीराम खड़े हैं,
धनुष से छोड़े तीर सखी री!
ऐसे तीर चलाबत रघुवर,
तीर से उड़त गुलाल सखी री !
उड़कर रंग गयी सीता की साड़ी,
और रंगा गोरे गाल सखी री।
मंद-मंद समीर चलत हैं ,
फूल खिले कचनार सखी री!

यमुना के तीर में कृष्ण कन्हैया,
वंशी में छेड़े तान सखी री!
ऐसे वंशी बजाए कन्हैया,
वंशी से उड़त गुलाल सखी री!
उड़कर रंग गयी राधा की चोली,
और रंगा गोरे गाल सखी री!
मंद-मंद समीर चलत हैं,
फूल खिले कचनार सखी री!

कैलाश गिरी पर बैठ महादेव,
डम-डम डमरू बजाबे सखी री !
ऐसा डमरू बजाबे सदाशिव,
डमरू से उड़त गुलाल सखी री!
उड़कर रंग गया गौरा की चुनरी,
और रंगा गोरे गाल सखी री!
मंद-मंद समीर चलत हैं,
फूल खिले कचनार सखी री 
फूल -फूल पर भौर उड़त हैं,
बीतत फागुन मास सखी री।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, March 6, 2025

संस्कार (लघुकथा)

जय माँ शारदे 🙏🙏 

संस्कार (लघुकथा)

मन बहुत घबराता है सिम्मी की......!
 काहे खातिर.........?
 तुम तो कुछ समझती ही नहीं। अरे हमारी बेटियांँ जवान हो गई। आजकल के छोरों के रंग-ढंग तो देख ही रही हो । छोकरियों को देखते ही किस कदर.........
उनकी नादानियों की सजा हम अपनी बिटिया को क्यों..........
अरे हम उन मनचलों को रोक नहीं सकते । पर,अपनी बिटिया को तो घर में सुरक्षित.........।
हांँ-हांँ बेटियाँ ही ना बलि का बकरा हो सकती.......।
बेटों को तो छुट्टा साढ़..........
अरे हम यह नहीं कहते कि बेटों को.....
पर बिटिया को समझ कर घर में...........
 हमें बिटिया को समझा कर घर में नहीं.........
बेटों को समझाकर बाहर भेजना है कि लड़कियों के साथ किसी भी तरह की.............. पाप है जैसे तुम्हारी मांँ-बहन की आबरू है ।वैसे ही पराई लड़कियों और........।
 अपनी मांँ- बहन की तरह अन्य लड़कियों की सुरक्षा भी तुम्हारी........।
 तब देखना हमारी बिटिया भी सुरक्षित और बेटे भी व्यवहारिक और समझदार..........।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'