Sunday, May 29, 2022

मुक्तक

मुक्तक (कर आ )

मिटा दें हम चलो आतंक को अब मूल से साथी।
अपनाया था हमने जिसे कभी भूल से साथी।
मगर अब होश आया कि इसको दूर करना है-
मिला दें आओ इसको हम धूल से साथी।
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, May 28, 2022

जहर है नशा मानिए (गज़ल)



जिंदगी का जहर है नशा मानिए।
कण-कण में यह है बसा मानिए।

ग़लती से भी पास फटकने ना दें,
आ जाए भूल से तो बेवफा मानिए।

जलाती है लहू को आग बनकर,
तन को भस्म करती है जरा मानिए।

कमजोर करती कलेजे पात भाँति,
करती है ना किसी से वफ़ा मानिए।

सबसे बुरी लत है यह तो जीवन की,
और सबसे बड़ी है यह सजा मानिए।

घर को उजाड़ता, रिश्ते को है तोड़ता, 
इसकी वजह अपने होते खफा मानिए।

पनपने नहीं देती है जिंदगी किसी की,
क्योंकि नाश का घर है नशा मानिए।

सदा ही दूर रहिए इस छुपे दुश्मन से,
करती है ना कभी भी वफ़ा मानिए।

भूलकर भी स्वाद इसका ना लिजिए,
जिसने छुआ उसमें यह बसा मानिए।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, May 26, 2022

बेटी के कवन घर (मगही भाषा )



बेटी के कवन घर

कवन घर में जनमली बेटी दुलारी,
             कवन घर में होली स्यान।
कवन घर में बढली-पढ़ली गे बेटी,
         कवन घर में होयलो विवाह।

बाबा घर में जनमली बेटी दुलारी,
             वहीं घर में होयली स्यान।
बाबा घर में बढ़ली-पढ़ली गे बेटी,
          ससुर घर में होयलो विवाह।

हमर घरबा अउर हमर अंँगनमा,
               कही-कही झाड़े-बुहारे।
बुटी-कसिदबा से सजबै दलनिया,
             दुअरा पर फुलबा लगाबै।

होयते विवाह पराया होलै बेटिया,
            घरबा से छुटलै अधिकार।
घरबा के नाम अब भेलै नइहरबा,
          त्यागी देहो सब माया-मोह।

डोलिया पर बैठी जब गेलै ससुरालिया,
                  वहौं पराया व्यवहार।
हमर घर कहै सासु औ ननदिया,
                गोतनी कहे हमर राज।

मने-मने रोबै अब बेटी दुलरिया,
            अखिया में डब-डब लोर।
अइसन विधान काहे बनैला ये बिधि,
           बेटी के कउनो घर न ठौर।
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, May 25, 2022

मोर ससुराल गेंदा फूल

मोर ससुराल गेंदा फूल

मत रो बापू -मैया,
मत रो दीदी-भैया!
मोर ससुराल गेंदा फूल।

ससुरजी मेरे पिता के जैसे देते मुझको प्यार।
सासु-माँ अपनी माता-सी करती मुझे दुलार ।
लख-लख लेते हैं बलैया,
सुन ले बापू और मैया!
मोर ससुराल गेंदा फूल।

सैंया हैं संतोषी,कमाबे जो रुपए हजार।
हाथ खोल कर खर्चा करता है जा बाजार।
रखता ना एक रुपया,
सुन ले बापू और मैया!
मोर ससुराल गेंदा फूल।

जेठजी बड़े भैया जैसे रखते मुझपर ध्यान।
देवरजी छोटा भाई जैसा करता है सम्मान।
ना चाहिए मुझे रुपया,
सुन ले बापू और मैया!
मोर ससुराल गेंदा फूल।

जेठानी बड़ी भाभी जैसी है मेरा मन बहलाती।
देवरानी छोटी भाभी जैसी कामों में हाथ बटाती।
चलती पकड़ कलैया,
सुन ले बापू और मैया!
मोर ससुराल गेंदा फूल।

बड़ी ननदिया दीदी बनकर, बढ़िया बात सिखाती।
छोटी ननदी नटखट बहना,पल-पल मुझे सताती।
नाच के ता-ता थैया,
सुन लो दीदी-भैया!
मोर ससुराल गेंदा फूल।

बड़ा ननदोई हँस-हंँसकर मजाक मेरा बनाते।
छोटा ननदोई चाय सिवा कुछ कहने में शर्माते।
शर्माती मैं दैया-री-दैया,
सुन ले दीदी और भैया!
मोर ससुराल गेंदा फूल।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, May 23, 2022

जेठ की दुपहरी ( हाइकु )



जेठ की दुपहरी

जेठ माह की
तपती दुपहरी
ना मन भाए।

सूर्य तपता
लहक-दहक जो
यूं झुलसाए।

अग्नि लपटें
लप-लप झपटे
तन जलाए।

हो गया जीना
अब तो है मुश्किल
जी घबराए।

बंद हुआ है
घूमना औ फिरना
किसे बताएं।

गर्मी के मारे
पढ़ना-लिखना भी
रास न आए।

सूरज भैया
क्रोध क्यों करते हो
बिना बताए।

कंठ हैं सूखे
पानी औ शर्बत ना
प्यास बुझाए।

सूख गए हैं
कूप ताल-तलैया
जल धाराएंँ।

हर प्राणी का
बढ़ी तेरी गर्मी से
मन चिंताएँ।

तुम्हीं बता दो
ये संताप तुम्हारा
किसे बताएँ।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, May 22, 2022

दोहा(शब्द ( सीढ़ी )

-दोहा

शिव देवो के देव हैं, चरणों में प्रणाम।
इनकी कृपा से लोगों के, पूर्ण होते सब काम।।

आदि शक्ति गौरी माँ, रहतीं जिनके साथ।
उनके चरणों में सभी,सदा नवाओ माथ‌।।

इनकी ज्योति पुंज से,रोशन है संसार।
ब्रह्माण्ड में व्याप्त है,महिमा जिनकी अपार।।

नंदी जिनके  साथ हैं, भक्ति-भाव के रूप।
मिले न ऐसा भक्त कभी, अनुपम रूप-अनूप।।

शिव के हाथ शोभता, सोने का‌ त्रिशूल।
शिव-शंकर संहारक हैं,यह मानव की भूल।।
       सुजाता प्रिय समृद्धि

Monday, May 16, 2022

सखी (हाइकु)



सखी हमारी
बचपन की प्यारी
लगती न्यारी।

हँसी-ठिठोली
करती है मुझसे
बतिया भोली।

सखी से नाता
हर उम्र वालों के
मन को भाता।

मानो बहना
संग-संग रहना
जैसे गहना।

मन को भाती
सुख दुःख में वह
साथ निभाती।

राज जानती
मेरे मन की भाव
पहचानती।

मिल ना पाती
जब भी सखियों से
बेचैनी होती।

साथ रहती
संग-संग पढ़ती
राहें गढ़ती।

मन मिलता
जब भी है जिससे
सखी बनाती।

मन रूठे तो
सखियां ही आकर
मुझे मनाती।

सखी न छोड़ूँ
जगत से चाहे मैं
नाता जोड़ू।

सुजाता प्रिय समृद्धि