तमाचा (लघुकथा)
कार्यालय जाने के लिए जैसे ही रणधीर ने मेन रोड में अपनी बाइक घुमाई सामने से आती महिला ने पूछा-"यहाँ पर रंगोली होटल किधर है ?"
"यहाँ से थोड़ा आगे है।"कहते हुए वह बढ़ गया ।
लेकिन आगे बढ़ते ही वह रुक गया। पीछे मुड़कर देखा। महिला पैदल ही बढ़ी आ रही थी।निकट आते ही उसने महिला से कहा -चलिए मैडम! मैं आपको छोड़ दूंँगा,उधर ही जा रहा हूंँ।"
महिला खुश होती हुई बाइक की पिछली सीट पर बैठ गयी।
उस सुंदर महिला को अपने साथ बैठा देख रणधीर के मन का शैतान जाग उठा।वह बार-बार बाइक को झटके दे रहा था जिसके कारण महिला के अंग उसकी पीठ से स्पर्श करता और उसे क्षणिक सुख की अनुभूति होती।
कुछ ही मिनटों में तेज झटके के साथ बाइक रोकते हुए कहा -"लिजिए मैडम आप पहुंच गई रंगोली होटल।" लेकिन इस बार के झटके में उसे वह स्पर्श -सुख की प्राप्ति नहीं हुई क्योंकि महिला ने अपना पर्स उसके और अपने मध्य कर लिया था। महिला हौले-से बाइक से उतर गयी।उसने एक बार सुंदरी के मनोभावों को पढ़ने हेतु उसके सुंदर मुखड़े पर नजरें टिका दी। महिला चेहरे पर कृतज्ञता के भाव लिए भोलेपन से बोली-"बहुत-बहुत धन्यवाद भैया ! आपने मुझे पहुंचा दिया।आज आटो-स्ट्राइक होने से मुझे पैदल ही आना पड़ता,और मेरी ऑफिस की जरूरी मीटिंग में मैं लेट हो जाती।"
उसके चेहरे के निर्मल भाव एवं अपने लिए '
भाई' का संबोधन सुन वह अपनी कुत्सित मानसिकता और क्षुद्र व्यवहार पर पाश्चाताप से गड़ा जा रहा था। उससे नजरें चुराता हुआ बाइक आगे बढ़ा दी ।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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