Friday, April 1, 2022

दर्दनाक अप्रैल फूल

दर्दनाक अप्रैल -फूल

शादी के बाद बाद हम सभी ससुराल में खुशहाल जीवन बिता रहे थे।सासु मांँ  और ससुर जी मेरा सदा ख्याल रखते।हम दोनों की सारी खुशियों में वे सम्मिलित होते।घर का बातावरण बहुत खुशनुमा था। जब मुझे इन्हें चिढ़ाना होता मैं बोल देती पापाजी आपको बुला रहे हैं।ये जाकर पापा से पूछते तो वे कहते नहीं ! मैंने तो नहीं बुलाया?जब इन्हें चाय पीने या कुछ खाने का मन करता कह देते पापा चाय बनाने अथवा कुछ नाश्ता बनाने बोल रहे हैं।जब मैं चाय अथवा नाश्ता बनाकर ले जाती तो वे कहते मुझे खाने का मन नहीं।तो मैं बोलती कि इन्होंने कहा कि आपने चाय बनाने के लिए कहा।तो वे हमारी सरारतों पर मजे लेकर हँंसते । हमारे हंँसते-खेलते घर-परिवार को जाने किसकी नज़र लग गयी। पापाजी के सीने में दर्द उठा और वे अस्पताल में भर्ती हो गए। चिकित्सक ने हृदयाघात कह इलाज शुरू किया।चार दिन बाद वे थोड़े ठीक हुए । चिकित्सकों ने दो- तीन दिनों बाद उन्हें छोड़ने की बात भी की थी। सब कुछ ठीक था इसलिए पापाजी ने ही इन्हें कहा -घर में दुल्हिन अकेली है चले जाओ।सुबह(पहली अप्रैल की सुबह) अस्पताल से चाचा ससुर जी का फोन आया, पड़ोसी के साथ जल्दी आ जाओ। जरूरी दवा लाने जाना होगा। अस्पताल पहुँचकर इन्होंने फोन किया। हमलोग पापा को लेकर आ रहे हैं। मुझे लगा हमेशा की तरह ये मजाक कर रहे हैं।अभी तो दवा लाने जाना था, तुरंत पापाजी घर कैसे आएंगे भला।
लेकिन थोड़ी देर बाद ही माताजी का हृदय बिदारक रूदन सुन समझ में आ गया कि नियति ने हमारे साथ कितना बड़ा अप्रैल-फूल मनाया।यह बुरी खबर फोन पर परिवार के लोगों को जिसने भी बताया,सभी ने यही कहा अप्रैल -फूल का मजाक ऐसा भी किया जाता है कहीं? लेकिन सभी को बाद में पता चला कि सचमुच भगवान ने हमें कैसा मुर्ख बनाया।इतने वर्षों बाद भी पास-पड़ोस के सभी लोग एक-दूसरे को मुर्ख बना रहे होते हैं,और हम सभी मुर्ख जैसे पापाजी की तस्वीर को प्रणाम कर रहे होते हैं।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

1 comment:

  1. सच में बहुत दर्दनाक संस्मरण है प्रिय सुजाता जी।कई बार नियती के पंच को समझ पाना बहुत कठिन होता है पर बहुत मर्मांतक और असहनीय होता है इसका प्रचण्ड प्रहार। हँसी खुशी के प्रतीक दिन के साथ एसी दुखद याद का जुड़ना बहुत दर्दनाक है।

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