मन- मंदिर में तेरी मूरत।
वात्सल्य की है तू सूरत।
तेरे चरणों में सब तीरथ।
चमके तेरी कितनी सीरत।
गोद बैठाया हृदय लगाया।
अपना दूध है हमें पिलाया।
जाग - जाग तू हमें सुलाया।
पढ़ना-लिखना हमेंसिखाया।
सत-पथ पर चलना बताया।
भला-बुरा का ज्ञान दिलाया।
कामयाब,कबिल हमें बनाया।
आत्म-निर्भर तू हमें बनाया।
गुड्डा-गुड़िया बना सलोना।
तूने मुझको दिया खिलौना।
जीवन का हर कोना-कोना।
तेरे कारण बन गया सलोना।
सिखाई सिलाई और कटाई।
बेल -बूटे की सुंदर कढ़ाई।
कहाँ-तक तेरी करूँ बड़ाई।
तू ही सब कुछ हमें सिखाई।
शिष्टाचार का ज्ञान दिया है।
तूने मुझको मान दिया है।
जग में कुछ पहचान दिया है।
शिक्षा का वरदान दिया है।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (8-9 -2020 ) को "ॐ भूर्भुवः स्वः" (चर्चा अंक 3818) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
सादर धन्यबाद सखी कामिनी जी ! नमस्कार।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन सखी।
ReplyDeleteसादर