Sunday, April 11, 2021

स्वामी दयानंद सरस्वती


स्वामी दयानंद सरस्वती

बारह दो अठारह सौ चौबीस।
अवतरण लिए वे थे पर हित।
नाम उनका  था मूल  शंकर।
विद्या-बुद्धि- गुण से थे प्रखर।
पैतृक गांव उनका था  टंकारा।
जहां के थे वे आंखों का तारा।
करशन जी थे पिताजी उनके।
यशोदा वाई माता थी जिनकी।
गुरु उनके विरजानंद दण्डीश।
शिक्षा देते थे  वे उन्हें अहर्निश।
राष्ट्रीयता भारतीय,धर्म था हिन्दू।
संस्कृत भाषा थी जीवन की बिंदू।
धार्मिक पाखंडों का कर खंडन।
सहज छुड़ाए  सब  झुठा बंधन।
सत्य का उन्होंने ज्योत जलाया।
समाजिक बुराई को दूर भगाया।क्ष
ईश्वर भक्त थे सरस्वती दयानंद।
ईश्वर भक्ति से उनको था आनंद।
वेदों की ओर लौटो उनका नारा।
वेदों से होगा जीवन  उजियारा।
वेदों के भाष्य से ऋषि कहलाए।
महता वेदों की सबको बतलाए।
आर्य समाज के थे वे संस्थापक।
गुरुजनों के थे वे आज्ञापालक।
महाऋषि थे और महान चिंतक।
सदा अनुआयी रहते नतमस्तक।
सिद्धांत,पुनर्जन्म,ब्रह्मचर्य,संन्यास।
थे उनके दर्शन -  स्तम्भ ये खास। 
सत्यार्थ प्रकाश थी उनकी रचना। 
लक्ष्य आर्य समाज का प्रचार करना।
स्वतंत्रता-संग्राम के थे प्रणेता।
इनके कारण हम बने विजेता।
अजमेर उनकी पुण्य भूमि,राज्य राजस्थान।
अंतिम सांस लिए जहां,महात्मा पूज्य महान।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
               रांची, झारखण्ड
              स्वरचित, मौलिक
             अप्रकाशित रचना

2 comments:

  1. वाह !पूरा जीवन वृत्त ही लिख दिया स्वामी जी का | गागर में सागर सखी | बहुत अच्छा लिखा आपने |

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  2. बहुत -बहुत धन्यवाद सखी। मेरी रचना को इतनी तन्मयता से पढ़ने एवं प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए।

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