Friday, November 27, 2020

गज़ल


अपने साथी का मुझको पता मिल गया।
ऐसा लगता है सारा जहां मिल गया।

हम बिछड़े थे एक - दूसरे से कभी,
आज इत्तफाक से वह यहां मिल गया।

जब हमसे हुआ वह यहां रुबरू,
लगा ऐसा कि हमसे सदा मिल गया।

मेरे दिल में दीया जल रहा प्यार का,
रोशनी के लिए इक मकां मिल गया।

वह रूठे न मुझसे, कभी उम्र - भर,
मनाने का  नया रास्ता मिल गया।

जुदा न रह पाएंगे हम उससे कभी, 
संग रहने का नया रास्ता मिल गया।

मैं मिली तो वह सोंचा कि धरती मिली,
'प्रिय' मुझको मिला आसमां मिल  गया।
                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                    स्वरचित, मौलिक

No comments:

Post a Comment