आओ बच्चों!मेरे कुछ,
पन्नों को तुम भी पढ़ लो।
ग्यान के स्वर्णिम भूषण से,
जीवन को तुम मढ़ लो।
मुझको पढ़कर सारे प्राणि,
हो जाते हैं पंडित ग्यानी।
मुझमें देखो रची हुई है,
संतों की सब मीठी वाणी।
वेद,पुराण,उपनिषद गीता,
सभी हैं मेरे ही रूप।
रामायण,गुरुग्रंथ साहिबा,
वाईविल , कुरान , अनूप।
हर विषय का ले लो हमसे,
तुम हर तरह का ग्यान।
राजनीति, भूगोल,गणित हो,
चाहे साहित्य विग्यान।
मेरे विस्तृत सीने में है,
छिपे हुए अनेकों राज।
कैसे किसनेे सत्ता पायी,
कैसे पाया है ताज।
वर्तमान- भूत की सभी कथा,
मुझमें ही अंकित है।
दुनियाँ भर की सभी कला,
मुझमें ही संचित है।
सुजाता प्रिय
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (07 -07-2019) को "जिन खोजा तिन पाईंयाँ " (चर्चा अंक- 3389) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
जी नमस्ते अनीता बहन ।मेरी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा जिन खोजा तिन पाईंयाँ चर्चाअंक में करने के लिए सादर धन्यबाद।साभार।
Deleteकिताब का पुरा इतिहास संजोये बहुत सुंदर प्रस्तुति सखी।
ReplyDeleteअप्रतिम।
धन्यबाद सखी।उत्साह बढ़ाने के लिए। आभार।
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteजी धन्यबाद भाई।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
८ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
मेरी रचना को साझा करने के लिए धन्यबाद श्वेता।सस्नेह।
ReplyDeleteवाह!!बहुत सुंदर रचना !
ReplyDeleteधन्यबाद शुभा बहन।
Deleteबहुत सुंदर रचना सुजाता जी
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद अनुराधा जी। सादर
Deleteसही कहा किताबें ही ज्ञान का भंडार हैं ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर...।
जी सुधा बहन धन्यबाद।
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सखी
ReplyDeleteसादर
धन्यबाद सखी ।आभारी हूँ।
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