Sunday, September 22, 2019

अच्छाई -बुराई

मड़ुए की रोटीऔर नोनी की साग।
    सतपुतिए की तरकारी रख परात।
       सबको थोड़ा-थोड़ा हाथ में लेकर।
         बार-बार फेंकती माँ छप्पर के ऊपर।

बोलती हे चिल्ही! सब हो तेरी जैसी।
    हे सियारिन !कोई ना  हो तेरी जैसी।
       जाने किस भाव से, बोलती यह मंत्र।
          अपनाने -  दुराने का, कैसा यह तंत्र।

माँ की बातों की मैं समझती न भाषा।
     सब होऔर कोई ना हो की परिभाषा
        क्या चिल्ही की भूखी रहने की बात।
            सियारिन का भूख न सहने की बात।

या  चिल्ही के दीर्घायु बच्चे की बात।
    सियारिन के अल्पायु बच्चे की बात।
       चिल्ही का निष्ठापूर्वक व्रत का रखना।
           सियारिन का व्रत से मन का भटकना।

शायद चिल्ही का उसके बेटे जिलाना।
     सियारिन द्वारा दूसरे के बेटे मरवाना।
          सच है  बुराई  का होता है निरादर।
           अच्छाई को जग में मिलता है आदर।
                            सुजाता प्रिय

2 comments:

  1. बहुत सुंदर सुजाता जी ,आज अष्टमी हैं सबने व्रत रखा हैं ,मैं भी अपनी माँ के मुख से ये कहानी सुनती आ रही हूँ और आज भी उन्होंने फ़ोन पर ही ये कहानी सुनाई ,आपकी कविता ने भावुक कर दिया ,सच ये कहानी सदा से हमे यही सिखाती आई हैं कि बुराई पर अच्छाई की जीत निश्चित होती हैं ,सादर

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  2. धन्यबाद सखी! आपको जिउतिया अषटमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामना।सप्रेम नमस्ते।

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