अखियों में काजल भर,
मुझको जादू न कर ,बृजबाला !
तेरा काजल है मतवाला।
यह गोकुल नगर,
जिसमें है मेरा घर,गुणवाला।
मैं हूँ मोहन बाँसुरीवाला।
काले-मेघों से काजल चुराकर।
तूने अखियों में रख ली बसाकर।
अब मुझे न चुरा,
मुझको दिल में बसा,सुरबाला!
मै हूँ मोहन बाँसुरीवाला।
तेरे काजल में जादू भरी है।
इसलिए मेरी अखियाँ लड़ी है।
मुझको घायल न कर,
अपने कायल न कर,हे बाला।
मैं हूँ मोहन बाँसुरीवाला।
तेरी अखियों का काजल निराला।
तेरे नैना है मदिरा का प्याला।
मुझको करे बेखबर,
कुछ न आता नजर,मधुवाला!
मैं हूँ मोहन बाँसुरीवाला।
अपने नैनों में काजल न डालो।
मृगनयनी तू मुझको बसा लो।
तुझको लगता है डर,
मुझसे ऐ हमफर,मैं हूँ काला।
मैं हूँ मोहन बाँसुरीवाला।
सुजाता प्रिय