लॉक डाउन लगा हुआ है,
हम बंद पड़े हैं घर में।
बोर हो रहे कमरे के अंदर,
पड़े - पड़े बिस्तर में।
इस रोग की यही दवा है ,
दूर रहें हम जन से।
मिलना-जुलना कुछ दिन छोड़ें,
मित्रों औ परिजन से।
जनता कर्फ्यु लगा था उस दिन,
ऐसे ही उकताए थे ।
कैरम - लूडो खेल घर में,
दिनभर समय बिताए थे।
शाम के पाँच बजते ही हम,
खूब बजाए ताली।
दीदी- मुन्ना दोनों मिलकर ,
. बजा रहे थे थाली।
सब लोगों के हाथ में टुन-टुन ,
बज रही थी घंटी।
शंख नाद कर उठे जोर से,
छत पर अंकल-अंटी।
दादाजी ने बालकनी में,
ढोलक खूब बजाई।
एकता का संदेश सभी ने,
एकजूट हो गाई।
सभी घरों से ऐसी-ही ,
झंकार सुनाई दी थी।
भाग-भाग तू ऐ कोरोना!
दुत्कार सुनाई दी थी।
संगठन में शक्ति बहुत है ,
हमसब संगठित होकर।
सारे नियमों का पालन कर,
लड़ें आपदा से डटकर।
एक मत हो सारे मानव,
कोरोना का नाश करेंगे।
इसे हराकर फिर से हमसब,
सुख से बास करेंगे।
कोरोना से युद्ध हमारा,
तब-तक रहेगा जारी।
जब-तक इसके प्रकोप से ना,
मुक्त हो दुनियाँ सारी।
कोरोना को दूर भगाने को,
सब हो जा तैयार।
सब हो जा तैयार साथियों!
सब हो जा तैयार।
सुजाता प्रिय
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 27 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteदीदीजी को सादर नमन।मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद।
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