नजरें बिछाए बैठ़ी हूँ तेरा दीदार चाहिए।
दिलवर तुम्हारे दिल में मुझे प्यार चाहिए।
दिल में तुम्हारे प्यार का दरिया है बह रहा।
दिलबर के दिल में डूबना दस्तूर है यहाँ।
दिलवर तू खेवनहार हो पतवार चाहिए।
दिलवर तुम्हारे दिल में मुझे प्यार चाहिए ।
मेरे दिल के दायरे में दिलवर तुम्हीं रहो।
दखल हो किसी और का ये बात ना कहो।
दुआ हो जिसके लब पे वो दिलदार चाहिए ।
दिलवर तुम्हारे दिल में मुझे प्यार चाहिए।
दिलवर हमारे दरमियाँ दीवार ना रहे ।
दस्तक पे दिल का बंद दरवार ना रहे।
दिल की दरख्त पर बस दुलार चाहिए।
दिलवर तुम्हारे दिल में मुझे प्यार चाहिए।
दिलवर कभी भी दिल को दुत्कारना नहीं।
दिल में कभी भी लाना तू दुर्भावना नहीं।
दिल को दुरुस्त रखने की दरकार चाहिए ।
दिलवर तुम्हारे दिल में मुझे प्यार चाहिए।
सुजाता प्रिय
बहुत खूब... ,सुंदर सृजन ,सादर नमन सुजाता जी
ReplyDeleteहृदय तल से सुक्रिया कामिनी जी! इसी बहाने आपसे मुलाकात हो जाती है।सस्नेह नमस्ते।
ReplyDeleteहृदय तल से सुक्रिया कामिनी जी! इसी बहाने आपसे मुलाकात हो जाती है।सस्नेह नमस्ते।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१६ मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत-बहुत धन्यबाद श्वेता।
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