अखियों में काजल भर,
मुझको जादू न कर ,बृजबाला !
तेरा काजल है मतवाला।
यह गोकुल नगर,
जिसमें है मेरा घर,गुणवाला।
मैं हूँ मोहन बाँसुरीवाला।
काले-मेघों से काजल चुराकर।
तूने अखियों में रख ली बसाकर।
अब मुझे न चुरा,
मुझको दिल में बसा,सुरबाला!
मै हूँ मोहन बाँसुरीवाला।
तेरे काजल में जादू भरी है।
इसलिए मेरी अखियाँ लड़ी है।
मुझको घायल न कर,
अपने कायल न कर,हे बाला।
मैं हूँ मोहन बाँसुरीवाला।
तेरी अखियों का काजल निराला।
तेरे नैना है मदिरा का प्याला।
मुझको करे बेखबर,
कुछ न आता नजर,मधुवाला!
मैं हूँ मोहन बाँसुरीवाला।
अपने नैनों में काजल न डालो।
मृगनयनी तू मुझको बसा लो।
तुझको लगता है डर,
मुझसे ऐ हमफर,मैं हूँ काला।
मैं हूँ मोहन बाँसुरीवाला।
सुजाता प्रिय
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
३० मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
मेरी रचना को पाँच लिकों के आनंद पर साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद स्वेता।
ReplyDeleteवाह!!सखी सुजाता जी ,बहुत सुंदर !
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार सर! नमन
Deleteवाह !! बहुत सुंदर, राधा मोहन के प्रीत बिखेरती सुंदर रचना सखी ,सादर नमन
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी।
ReplyDelete