जगह-जगह अंबार है ,लगा हुआ इंधन का।
सभी जगह तैयारी है,होलिका के दहन का।
साँझ होते ही बुराई की प्रतीक होलिका जलेगी।
वर्ष भर की विषमताएँ , जलकर आज टलेगी।
साथ मिलकर सभी ,जाते हैं होलिका जलाने।
बुराई पर अच्छाई का, विजय- गीत को गाने।
लेकिन कोई जला न पाता,निज मन के विकारों को।
नहीं कोई भी त्याग है पाता , अपने बुरे विचारों को।
सच्ची होलिका तभी जलेगी,जब सारे भेद जला दो।
समस्त दुर्व्यवहारों को,होलिका की,गोदी में बैठा दो।
भरम मिटा दो भेद-भाव का,प्रेम सदा लहरा लो।
अन्याय-दूष्टटता-कटुता को ,मन से दूर भगा लो।
द्वंद्व दूर कर मन में बंधुत्व के पाठों को दुहरा लो।
मानव हो तो मानवता के,झंडे को तुम फहरा लो।
सुजाता प्रिय
सखी , होलिका दहन के माध्यम से बहुत सटीक चिंतन !! होलिका दहन के माध्यम से मन के विकार जलाने का विचार ही उत्तम है।
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार एवं सादर धन्यबाद सखी।
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