आजादी की ओर बढो़ तुम,
उठो नारियों भारत की।
सामाजिक बंधन तोड़ बढ़ो तुम
उठो नारियों भारत की ।
रावण हर न तुम्हें ले जाये।
राम अग्नि में नहीं जलाये।
चीर-हरण न करे दुःशासन।
पत्थर तुमको करे न गौतम।
बलात् अंधी मत बन गंधारी-सी,
उठो नारियों भारत की।
दुर्गा बन मार गिरा असुरों को।
अनुसुया बन पालने झुला देवों को।
सावित्री बन सौभाग्य वापस ले यम से।
लक्ष्मी बन मार भगा अँग्रेजों को।
हैवानों से लो डटकर टक्कर,
उठो नारियों भारत की।
सुजाता प्रिय
उत्साह से परिपूर्ण
ReplyDeleteजोश भर देने वाली रचना।
सवाल ये कि क्या भारत की स्त्री खुद को गुलाम मानती है???
नई पोस्ट - कविता २
कुछ सामाजिक बंधनों एवं परम्पराओं में जकड़ी रही।छल से लुटी पर सहानुभूति के बजाए सजा पाईं।अंधविश्वासों में डूबी रहीं उनसे आजाद होना चाहिए।नीचे की पंक्तियो की प्रेरणा लेकर।होली की अनंत शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteसामाजिक बंधन एवं अंधविश्वासों ने जकड़ी।हर दुष्टा के सहकर भी कलंकिनी बन सजा भुगतती रहीं। निचली पंक्तियो की नारियों से प्रेरणा ले स्वयं को सुदृढ़ व शक्तिशालिनी बनाना होगा।
ReplyDeleteओज भरी प्रेरक रचना सखी। हम नारियों को ईश्वर ने अद्भुत क्षमताओं का वरदान दिया है। उन्होंने अपनों के लिए बंधन स्वीकार किये तो स्वाभिमान के लिए इन्हें तोड़ने में भी गुरेज़ नहीं किया। भारतीय नारी के जीवन मिली बहुत ऊँचे हैं। सार्थक रचना के लिए बधाई सखी। 💐💐💐💐
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद एवं आभार सखी।
Deleteजीवन मूल्य पढ़ें 🙏🙏
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