Sunday, September 29, 2019

जल-भुन जाते

                                 तारीफ
                                
                                 अपनी
                              तारीफ सुन
                             खुश हो जाते।
                       मन-ही-मन पूरा इतराते।
                           तारीफ करना तो
                             दूर किसी की।
                               सुन तारीफ
                         हम जल-भुन जाते।
                              सुजाता प्रिय

अपनी गलती

                                 दूसरे
                           को गलत तो
                        सभी लोग कहते हैं,
                     पर शायद ही हैं लाखों में
                  जो अपनी गलती मान लेते हैं।
                             सुजात प्रिय

Friday, September 27, 2019

आ सुर मिला लें (गीत)

आ सुर मिला लें जरा,
एक नए अंदाज में।
साथ गुनगुना लें जरा,
एक सुर के राग में।

सुर  को  सँवार लें,
लय को निखार लें।
बेसुरे   रागों   को,
थोड़ा हम सुधार लें।
सुर को सजा लें जरा,
एक प्यारे अंदाज में।
साथ गुनगुना लें जरा,
एक  सुर के  राग में।

आ साथ मिलके हम,
छेड़े आज सरगम।
मधुर -मधुर तान दे,
तरs रs  तरम पम।
दिल बहला लें जरा,
एक नए अंदाज में।
साथ गुनगुना लें जरा,
एक सुर के राग में।

मिल्लतों की  रीत  हो,
सबको सबसे प्रीत हो।
सबके सुरों में  आज,
एकता  के  गीत  हो।
एक लय में गा लें जरा,
एक  नए  अंदाज  में।
साथ गुनगुना लें जरा,
एक  सुर  के राग  में।
        सुजाता प्रिय

Wednesday, September 25, 2019

अच्छा वरदान माँग

पारसमणि नाम का एक बड़ा ही आलसी  व्यक्ति था।दूसरे का धन-दौलत,इज्जत-सोहरत से उसे बड़ी ईर्ष्या होती।वह सबसे सुंदर,धनवान और यशस्वी बनना चाहता था । लेकिन ,इन्हें प्राप्त करने के लिए मेहनत नहीं करना चाहता था।
एक दिन उसे एक महात्मा से भेंट हुई।उसने उनसे अपनी मनोकामनाएँ पूर्ण होने का कोई सरल-सा उपाय पूछा। महात्मा जी ने कहा- मैं तो केवल महान कार्य एवं उद्वेश्यों का मार्ग बतलाता हूँ।" मनोकामनाएँ पूर्ण तो सिर्फ ईश्वर की इच्छा से होती है।"
पारसमणि ने उनसे ईश्वर से साक्षात्कार का उपाय पूछा।महात्माजी ने उसे ईश्वर से साक्षात्कार के लिए एक मंत्र देते हुए कहा- तुम इस मंत्र का नियमपूर्वक जाप करो।कृपालु भगवन एक दिन अवश्य दर्शन देकर तुम्हारी सारी कामनाएँ पूर्ण करेंगे।
पारसमणि को महात्मा जी का यह सुझाव बहुत पसंंद आया।वह वन जाकर महात्मा जी के बताए अनुसार तप करने लगा।
उसके तप से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान ने उसे दर्शन दिया और  कहा- वत्स ! मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ। कहो तुम्हें क्या वरदान चाहिए ?
पारसमणि ने हाथ जोड़कर विनयपूर्वक कहा - हे परमेश्वर! मैं समस्त प्राणियों से सुंदर धनवान और विजयी बनना चाहता हूँ।इसलिए हे अंतर्यामी! आप मुझे मेरे मन की सारी अभिलाषाएँ पूर्ण होने का वरदान दें।
परम पिता परमेश्वर ने कहा- हे भद्रे ! तुम अपने मन से तीन भावों का त्याग करो और मन में तीन भावों को ग्रहण करो तुम्हारी सारी कामनाएँ पूरी हो जाएगी।
पारसमणि ने परित्याग करने के और ग्राह्य करने के उन तीनों भावों के बारे ईश्वर से पूछा।ईश्वर ने कहा-परित्याग करने के लिए तीन भाव हैं- ईर्ष्या-द्वेष और आलस्य।तथा ग्राह्य करने के लिए तीन भाव हैं-सेवा,त्याग और परिश्रम।
लेकिन पारसमणि को भगवान का बताया यह मार्ग बड़ा ही वक्र और कठिन लगा।वह उनसे इसके बदले तीन वरदान देने की जिद करने लगा। उसकी हठ भरी याचना से उबकर भगवान ने उसे तीन वरदान मांगने को कहा।लिकिन आलसी  पारसमणि ने वर सोंचते-सोंचते तीन दिन लगा दिए।उबकर भगवान ने कहा-जब तुम्हें वरदान याद पड़े मुझे याद कर लेना। और वे अंतरध्यान हो गए।
वरदान की आस में पारसमणि और आलसी हो गया।बैठे-बैठे वह बस यही सोंचा करता कि ऐसा कौन सा वरदान भगवान से माँगू ,जिससे समाज में मेरी मान - प्रतिष्ठा बढ़ जाए। इस प्रकार कोरे आत्मसम्मान के लिए वह अपना  लाभ और सबका हानि की बात सोंचने लगा।
इसी बीच उसकी भेंट एक सेठ परिवार से हुई।सेठजी का ऊँच कोटि- का आन-बान-शान देख उसका मन विद्वेष से भर गया।वह सोंचा सेठ का धन- दौलत नष्ट हो जाय तो उसका सारा ठाट-बाट चकनाचूर हो जाएगा।आव-देखा-न-ताव उसने झट से ईश्वर को स्मरण किया और दर्शन पाकर हाथ जोड़कर उनसे विनित स्वर में कहा- हे प्रभो ! आपने हमें तीन वरदान देने का वचन दिया है,इसलिए मेरे प्रथम वरदान के रूप में इस सेठ के सारे धन-दौलत नष्ट कर डालें।
कृपालु भगवन ने उसे समझाते हुए कहा- उसके धन नष्ट हो जाने से तुम्हें कोई लाभ तो नहीं।इसलिए तुम उसकी बुराई की अपेक्षा अपने हित के लिए कोई वर मांगो।
लेकिन विद्वेषी पारसमणि ने उनकी बातों पर ध्यान दिए बिना बड़े-ही कठोर शब्दों में कहा - आपने हमें वरदान देने का वचन दिया है।अतः मैं वरदान माँग रहा हूँ ।आप हमें ये व्यर्थ की बातें समझाकर टालने की कोशिश ना करें।
उसकी इस कटु वाणी से नाराज होकर ईश्वर ने उसके प्रथम वरदान स्वरूप सेठ के सारे धन-दौलत नष्ट कर दिया।ईर्ष्यालु पारसमणि सेठ को कंगाल देख कर बड़ा प्रसन्न हुआ।सोंचा कोई तो ऐसा है जिससे मैं धनवान हूँ। इस प्रकार एक दिन मैं सबसे धनवान व्यक्ति बन
जाउँगा।
कुछ ही दिनों बाद उसका एक चचेरे भाई सागर ने अपनी जान- जोखिम में डालकर किसी को नदी में डूबने से बचा लिया।जिस कारण वह सारे शहर में प्रसंशा का पात्र बन गया।उसकी इतनी सराहना सुन पारसमणि को फिर ईर्ष्या ने आ घेरा ।आनन-फानन में उसने तुरंत ईश्वर का आह्वान किया।वचन के हारे भगवान तुरंत पधारे।उन्हें देख पारसमणि ने कहा- भगवन अब आपको मेरा दूसरा वरदान देने का वक्त आ गया।अपने वचनानुसार मेरे दूसरे वरदान के रूप में मेरे चचेरे भाई की सारी प्रसंशा खत्म कर दें।
भगवान को उसके तुच्छ विचारों पर बड़ी तरस आई।उन्होंने पूर्व की तरह फिर उसे समझाने की कोशिश की और उसे अपने लिए कोई अच्छा-सा वर माँगने के लिए प्रेरित किया।लेकिन मूढ़मति पारसमणि अपने निर्णय पर अडिग रहा।
भगवान ने सोंचा इसे सुधारने का एकमात्र उपाय भी यही है।अपनी माया का ऐसा चक्र चलाया कि कल की अच्छी बातें आज बुराई में बदल गई।हुआ यूं महल्ले मे आग लगी।और आग लगने का सारा आरोप महल्ले वालों ने  सागर पर लगाया ।इस प्रकार जितना लोग कल उसकी प्रसंशा कर रहे थे सब उसकी निंदा करने लगे।उसके माथे पर लगा कलंक ने पारसमणि के ईर्ष्यालु मन को बहुत ठंढक पहुँचाई।
जब वह भगवान से अपने तीसरे वरदान के बारे में सोंचने लगा।कौन-सा ऐसा वर माँगू जिससे बहुत कुछ हासिल हो जाए।
तभी उसके अंतर्मन ने उसे धिक्कारते हुए कहा -मुर्ख! तूने दो वरदान माँगकर ही क्या हासिल कर लिया ? क्या तुम सेठ से ज्यादा धनवान हो गए ? या फिर सागर से ज्यादा यश प्राप्त कर लिया ? ईर्ष्या और द्वेष में घिरकर दूसरे की क्षति की जगह यदि तुम अपने लिए धन और यश की माँग करते तो आज तुम भी बहुत धनवान और यशस्वी होते।
उसके ग्यान चक्षु खुल चुके थे।आत्मग्लानि से भर अपनी करनी पर पाश्चाताप करते हुए भगवान का आह्वान किया।जब उन्हें देखा तो उनके चरणों में गिरकर विनम्रता से प्रा्र्थना करते हुए कहा - हे अंतर्यामी आपने हमें तीन वरदान देने का वचन दिया।परन्तु अग्यानतावश मैंने जो आपसे दो वरदान माँगे उसके लिए मैं अक्षम्य पाप का भागी हूँ।इसलिए हे जगदीश अपने इस पाप के प्रायश्चित के लिए मेरी आपसे विनती है कि तीसरे वरदान के रूप में मेरे मन के दुर्विचारों को दूर करें और जिस प्रकार दो बार मुझे अग्यानता के मार्ग पर भटकने से रोकने की कोशिश की उसी प्रकार सदा मेरी संमार्गदर्शक बने रहें।
भगवान प्रसन्न होकर एम्वस्तु के भाव से मुस्कराए और अपने दूसरे भक्तो की ओर बढ़ चले।
उस दिन से पारसमणि लोभ-मोह, ईर्ष्या-द्वेष क्रोध-आलस्य सभी को त्याग दिया।अब वह किसी की प्रसंशा और दौलत देख जलने की अपेक्षा स्वयं अच्छे कर्म करता । खूब परिश्रम कर धन कमाता और उससे जरुरतमंदों की मदद करता।इस प्रकार उसके यश का शुभ्र प्रकाश दसो दिशाओं में फैल गया। सभी लोग उसके गुणों के प्रसंशक बन गए।अपने अच्छे कर्म में और सद्विचारों द्वारा धनवान गुणवान और यशस्वी हो गया।अब वह काफी प्रसन्न और संतुष्ट रहने लगा,जिससे उसका चेहरा देदीप्यमान हो उठा और वह काफी प्रभावशाली दिखने लगा।
अब वह सभी को उपदेश देता-ईश्वर बड़ा दाता है ।उससे अच्छा वर माँग जिससे जगत के समस्त जीवों सहित तेरा भी कल्याण हो।
                                 सुजाता प्रिय

Sunday, September 22, 2019

अच्छाई -बुराई

मड़ुए की रोटीऔर नोनी की साग।
    सतपुतिए की तरकारी रख परात।
       सबको थोड़ा-थोड़ा हाथ में लेकर।
         बार-बार फेंकती माँ छप्पर के ऊपर।

बोलती हे चिल्ही! सब हो तेरी जैसी।
    हे सियारिन !कोई ना  हो तेरी जैसी।
       जाने किस भाव से, बोलती यह मंत्र।
          अपनाने -  दुराने का, कैसा यह तंत्र।

माँ की बातों की मैं समझती न भाषा।
     सब होऔर कोई ना हो की परिभाषा
        क्या चिल्ही की भूखी रहने की बात।
            सियारिन का भूख न सहने की बात।

या  चिल्ही के दीर्घायु बच्चे की बात।
    सियारिन के अल्पायु बच्चे की बात।
       चिल्ही का निष्ठापूर्वक व्रत का रखना।
           सियारिन का व्रत से मन का भटकना।

शायद चिल्ही का उसके बेटे जिलाना।
     सियारिन द्वारा दूसरे के बेटे मरवाना।
          सच है  बुराई  का होता है निरादर।
           अच्छाई को जग में मिलता है आदर।
                            सुजाता प्रिय

Thursday, September 19, 2019

सौ बार करूँ सजदे

      सौ  बार  करूँ सजदे, सौ  बार  करूँ मिन्नत।
      बस आपके कदमों में ऐ खुदा है मेरी जन्नत।
                            खुद सर
                      को झुका करके ,
                    हम  बंदगी  करते हैं।
                    दरिया में घिरी कश्ती ,
                          तेरे हाथ में
                             देते हैं।
       अब तू ही पार लगा ,बढ़ा तू मेरी हिम्मत।
                            मालिक
                          तेरे  वंदे. पर,
                   मुश्किल की घड़ी आई।
                  तेरे दिल की अदालत में,
                          रख ले  मेरी
                           सुनवाई।
     फरियाद मेरी सुन ले,दुश्मन से करा मिल्लत।
                           माना हम
                          काफिर  हैं,
                   पर तुम तो रहमदिल हो।
                    हम   राह  भटक  बैठे,
                         तुम  तो   देते 
                           मंजिल हो।
      तू ही हो मेरे रहवर ,कर तू ही सदा रहमत।
                          सुजाता प्रिय

Monday, September 16, 2019

कोई आहत है

                            दूसरे से
                       सद्व्यवहार का,
                   हमें सदा ही चाहत है।
              गलतियों,गलतफहमियों से भी
                   दिल बड़ा मर्माहत है।
                        सशंकित होकर,
                              उनके
                         सद्व्यवहारों
                               को,
                          देखते हैं हम ।
                      उनके सद्व्यवहार
                  में भी, क्या कोई स्वारथ है?
               झाँकते नहीं कभी मन में अपने,
         कि मेरे दुर्व्यवहारों से भी, कोई आहत है।
                          सुजाता प्रिय

Sunday, September 15, 2019

माँ का ऋण हम कभी चुका नहीं सकते

माँ का  ऋण हम  कभी  चुका नहीं सकते।
ब्याज तो दूर,मूलधन भी लौटा नहीं सकते।

माँ ने गढ़ा हमें  दस  महीने  पेट की चाक में।
दस पल भी हम माँ के लिए गवां नहीं सकते।

ठोकरें सही  कितनी माँ ने पेट  के अंदर हमारी।
मिनट भर उसके पैरों को हम सहला नहीं सकते।

जिस  तरह प्रसव  वेदना  से  विलख  रोई थी माँ।
उस तरह पीड़ित हो हम कभी छटपटा नहीं सकते।

माँ ने पिलाया अपना रुधिर सफेद कर हमको।
ठंढे मन से माँ को पानी तक पिला नहीं सकते।

चंदन औ गंगाजल मान मल-मुत्र हमारा माँ ने धोया।
माँ के बुढ़ापे का बास हम नाक तक ला नहीं सकते।

रात-रात भर जाग थपकियाँ दे सुलाती थी हमको।
घंटे-दो-घंटे भी जाग,माँ को  हम सुला नहीं सकते।

हमें सुलाने के लिए जाने माँ ने गाई कितनी लोरियाँ।
एक-दो भजन हम  उसके पास गुनगुना नहीं सकते।
                       सुजाता प्रिय

Friday, September 13, 2019

हिंदी भाषा

भारत में एकता और अखण्डता लाती हिंदी भाषा ।
इसलिए तो राष्ट्रीय भाषा, कहलाती है  हिंदी भाषा।
                          देवनागरी
                       लिपी है इसकी ,
                  संस्कृत है इसकी जननी।
                          हर अक्षर
                    एक लिखित रूप है
                 और है उच्चरित ध्वनि।
सरल रूप में शब्दों को समझाती है हिंदी भाषा।
                          वैज्ञानिक
                        भाषा है यह ,
                 इसमें नहीं उच्चारण दोष।
                            उन्चास
                     वर्णों की मालिका से,
                   भरा है सारा शब्दकोष।
एकरूपता और एकाग्रता सिखलाती हिंदी भाषा।
                           मात्राओं
                      से सज-धजकर ,
                   बढ़ा जाती यह सुंदरता।
                             निबंध,
                         लेख , नाटक,
                 रच जाती कहानी-कविता।
बड़े-बड़े फिल्म - उद्योग चलबाती है हिंदी भाषा।
                          हर भाषा
                का प्रतिनिधित्व करती ,
                सबका है साथ निभाती ।
                         हर प्राणि
                   को सरल है लगती ,
                  सबको है यह भाती।
सहजता से  सबको समझ में आती है हिंदी भाषा।
                      सुजाता प्रिय

Thursday, September 12, 2019

खामोशी की आवाज. (अगर हम असमाजिक तत्वों के खिलाफ आवाज नहीं उठाएंगे तो उनका मनोबल बढ़ता जायेगा और हमारी बच्चियाँ यहाँ मानसिक रूप से प्रताड़ित होकर भयभीत होती रहेगी।)

खामोशी की आवाज
सुपर्णा अपनी माँ के साथ पूर्वा से कोई किताब लेने आई।पुर्वा की माँ पुष्पा उन्हें बैठाकर बातें करने लगी।बात-चित के दौरान उन्होंने कहा _क्या कहूँ सुनीता बहन मैं तो इसकी खामोशी से परेशान हूँ।कुछ बोली ही नहीं कि क़्यों यह अजीत सर के क्लास में नहीं जाना चाहती?
आप कभी बेटी की बात सुनना चाहेंगी  तब न वह कुछ बोलेगी बहनजी ! जब यह कुछ बोलना चाहती है तो आप इसे डाटकर खामोश कर देती हैं।तब यह कुछ बोलेगी कैसे?
हम तो अपने ही बच्चों को न डाट सकते हैं , रोक सकते हैं , समझा सकते हैं।पुष्पा ने समझाते हुए कहा।
लेकिन जब हमारे बच्चों की गलती रहेगी तब न। हमारी बच्ची को कोई छेड़ता है , कोई कुछ बुरा-भला कहता है इसमें इनकी क्या गलती । पहले हमें अपने बच्चों की बातें तो सुननी चाहिए।उसे क्या परेशानी है , उसका समाधान ढुंढना चाहिए , उसका बचाव और सुरक्षा  करनी चाहिए।
तो क्या मैं इसकी सुरक्षा नहीं करती ? पुष्पा ने झट- से पूछ लिया।
सुनीता ने झिझकते हुए कहा -जब आप इसकी समस्या ही नहीं सुनतीं तो सुरक्षा कैसे करेंगी भला।आपको यह बताना चाही थी कि कुछ लड़के स्कूल जाते समय रास्ते की गुमटी पर खड़े होकर इन्हें छेड़तें हैं। लेकिन आप ने इसे ही डाट दिया कि तुम उधर से जाती क़्यों हो ? अब से ऐसी कोई शिकायत सुनी तो मैं तुम्हें स्कूल जाना बंद करा दूंगी।ऐसे मे यह अपने मन की बातें कैसे बताएगी आपको ? यह बात जब सुपर्णा ने मुझे बताया तो मैं स्वयं दो - चार दिन इनके पीछे जाकर सारी बात को समझी।फिर एक दिन गुमटी बाले को सारी बातें बताई , तो पहले उसने स्वयं उन्हें वहाँ खड़ा रहने के लिए मना किया और जब वे नहीं माने तो उसके अभिभावकों से उनकी शिकायत की । तब वे वहाँ खड़ा होकर फब्तियाँ कसना छोड़ दिए। अगर हम असमाजिक तत्वों के खिलाफ आवाज नहीं उठाएंगे तो उनका मनोबल बढ़ता जायेगा और हमारी बच्चियाँ यहाँ मानसिक रूप से प्रताड़ित होकर भयभीत होती रहेंगी। हमें इन्हें पूर्ण रूपेण निडर और साहसी बनाना चाहिए।
लेकिन यह अजीत सर के क्लास में क़्यों नहीं जाती?वहाँ तो सर खुद खड़े रहते हैं। वहाँ तो इस तरह की बातें नहीं हो सकती।पुष्पा ने झुंझलाते हुए कहा।
यह आप कैसे कह सकती है बहनजी कि वहाँ इस तरह की बातें नहीं हो सकती ? सुनीता ने बताया।वहाँ भी कुछ इसी तरह की बातें हैं  ।अजीत सर होमवर्क नहीं बनाने या कोई गलती करने पर सजा स्वरूप लड़कियों को क्लास से बाहर खड़ी कर देते हैं।फिर उसे डाटने का बहना कर उससे छेड़-छाड़ करते हैं।यही कारण है कि लड़कियाँ उनसे ट्यूशन नहीं पढ़ना चाहतीं।पूर्वा के साथ भी ऐसा ही हुआ है।उसने सारी बातें मेरी बेटी को बताया और उसने मुझे।एक बार तो मुझे लगा कि सारी बातें सुनकर सुपर्णा की तरह आप मुझे भी न डाट कर खामोश कर देंगी । लेकिन मैं इन सभी बातों से आपको अवगत कराना चाहती थी,सो कर दी ।अब आगे आपकी अपनी मर्जी।इतना कहते हुए सुनीता उठकर चलती बनी।
पुष्पा ठगी - खड़ी थी।
हाँ बहू ! सुपर्णा की माँ ठीक कह रही हैं । पूर्वा की दादी अपने कमरे से निकलती हुई बोली । बच्चों की बातों को सुनना समझना चाहिए ।न कि उसे ही दोषी मानकर खामोश कर दो या फिर डाँटने- पिटने लगो।मैं भी जब कभी भी पूर्वा की देख - भाल करने के लिए कहा तुमने उसकी डाँट - फटकार की ।जब वह छोटी-सी  थी तो पड़ोस के लड़के को उसे भींचकर चुमते देखा था तो उसके पास पूर्वा को नहीं रहने देने की सीख दी ।लेकिन तुमने इस नादान को ही घर लाकर खूब पीटा।इसमें इस बेचारी की क्या गलती थी ।यह तो उसकी दिन इन हरकतों को समझती भी नहीं थी।
पुष्पा अपनी सारी भूलों पर पाश्चाताप से गड़ी जा रही थी , जिनके लिए वह सिर्फ पूर्वा को ही दोष देकर उसे खामोश करती रही।
अचानक वह एक दृढ़ निश्चय के साथ उठी और पूर्वा से विनित स्वर में बोली - पूर्वा!आज अंतीम बार अजीत सर के क्लास जा।
पूर्वा ने सिहरते् हुए कहा - लेकिन मैंने आज वहाँ का होमवर्क नहीं किया है मम्मा।
मैं यही तो चाहती हूँ मेरी रानी बिटिया! पुष्पा ने उसे दुलारते हुए कहा ।आज मैं उन सभी बातों की आवाज बन जाना चाहती हूँ , जिनके लिए मैं आजतक तुम्हें खामोश करती रही।
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आज अजीत सर को फिर  एक मौका मिला।पूर्वा ने आज होमवर्क बिलकुल नहीं किया था।सजा के तौर पर उसे बाहर खड़ा कर दिया गया । सभी विद्यार्थियों को कुछ प्रश्नों को हल करने के लिए दे दिया गया। फिर क्या हमेशा की तरह वे पूर्वा के पास पहुँच गए। डाँटते हुए उसके गाल खींचे।अपनी लाल लाल आँखों से उसकी आँखों में झाँकते हुए कुछ बुदबुदाए और उसकी कमर में हाथ डाला।इतने में कुछ खड़खड़ाहट -सी महसूस हुई।उनहोंने बगल की झाड़ियो की ओर देखा।झाड़ी के पीछे से मुहल्लेवाले की महिलाएँ जिनकी बेटी या तो अभी यहाँ पढ़ रहीं थीं या पहले पढ़ चुकीं थी,सभी घरेलु हथियारों से लैस उनकी ओर बढ़ी आ रहीं थीं । -देखते -ही-देखते उनपर बेलन कलछुल  चिमटे मथानी और झाड़ुऔं से प्रहार होने लगा।पुष्पा उनकी पिटाई करती हुई कह रही थी-कमीने,मक्कार तूने तो गुरू- शिष्य के रिस्तों को भी दागदार कर दिया।मैं समझती थी बुजुर्ग हो ।बच्चों की देख - भाल अच्छी तरह करोगे  लेकिन तू तो संन्यासी की वेस में भेड़िया निकला ।आज तुम्हारी जुबान काटकर तुम्हें हमेशा के लिए खामोश कर दूंगी।
उनके विद्यार्थीगण विडियोग्राफी करनेे में लगे थे।तभी पुलिस की गाड़ी आकर रुकी और लोगों ने अजीत सर को पुलिस के सुपुर्द कर दिया।
                            सुजाता प्रिय

Tuesday, September 10, 2019

नारी

नारी तू पिंजरे का पंछी ,
तड़प-तड़प रह जाए।
संरक्षण के अधिन सदा ही,
अपना ओज छुपाए।
मन की बातें मन में रखती,
मन-ही-मन रोती है।
अश्रुजल से अंतर की,
पीड़ा सदा धोती है।
घुट-घुटकर रह जाए,
मन की व्यथा न कहने पाए।
अवला नाम का कलंक लगा है,
छुपा है रूप सबल तेरा।
सामाजिक बंधन में जकड़ी हो,
कुण्ठित है मनोबल तेरा।
शक्ति की जननी है तू,
पर, शक्तिहीना कहाए।
माँ बन जन को हृदय लगाती,
बहन बेटी बन देती प्यार।
पत्नी बन तू पुरुषों के,
करती है सपने साकार।
फिर भी तुमको किसी ठाँव,
सम्मान न मिलने पाए।
इस पिंजरे को छोड़ सहेली,
हो जा तू आजाद।
अपने यश -बुद्धि-शक्ति को,
मत कर तू बर्बाद।
जीवन सार्थक तब होगा,
जब जग में पहचान बनाए।
सुजाता प्रिय, राँची🙏🙏

Sunday, September 8, 2019

मेरी पहली कविता

प्रस्तुत कविता मेरे द्वारा रचित मेरी पहली कविता है। जिसे मैंने वर्षों तक शब्दों में बाँधा, भावों में पिरोया।कितनी बार उदास हुई , कितनी बार हताश हुई । फिर भी मेरी यह वही प्रेरणादायिनी कविता है जिसने मुझे कविता-कहानियाँ रचने के लिए प्रेरित किया।
        जब मैं छठवीं कक्षा में पढ़ती थी , तो कविवर "हरिवंश राय बच्चन " जी द्वारा रचित " आ रही रवि की सवारी" कविता पढ़ना था।कक्षा में शिक्षक द्वारा सारे प्रश्नोत्तर कराये गये।लेकिन उसमें एक करनीय कार्य  था कि "जा रहा रवि की सवारी "शीर्षक पर एक कविता  लिखें। शिक्षक से इसका उत्तर पूछा तो उन्होंने कहा यह तो स्वयं लिखना है ।पर उस वक्त एक पंक्ति भी लिखना मेरे वश में नहीं था।लेकिन मन में यह अपराध बोथ हमेशा रहता कि मैं अपना वह कार्य नहीं कर पायी। तब से मैंं यदा-कदा प्रयुक्त कविता को रचने का प्रयास करती रही।अंततः माता सरस्वती की असीम अनुकंपा से मैं इस कविता को रचने मे कामयाब रही।शायद यह अभी भी त्रुटिपूर्ण है।
                        प्रस्तुत

               जा रही रवि की सवारी

             किरण - रथ धुंधला पड़ा है ।
            कलि-कुसुम मुरझाया खड़ा है।
बादलों -से अनुचरों ने कंचन वसन पल में उतारी ।
              जा रही रवि की सवारी।

              विहग बंदी और चारण।
               वापसी का गाये गायन।
दौड़कर मैदान आई, तारकों की फौज सारी
               जा रही रवि की सवारी ।

                चाहती मिल लूँ विदा कह।
                पर ठिठकती देख कर यह।
रात का राजा के आगे,लग रहा है स्वयं भिखारी।
                जा रही रवि की सवारी।
                      सुजाता प्रिय