Sunday, September 15, 2019

माँ का ऋण हम कभी चुका नहीं सकते

माँ का  ऋण हम  कभी  चुका नहीं सकते।
ब्याज तो दूर,मूलधन भी लौटा नहीं सकते।

माँ ने गढ़ा हमें  दस  महीने  पेट की चाक में।
दस पल भी हम माँ के लिए गवां नहीं सकते।

ठोकरें सही  कितनी माँ ने पेट  के अंदर हमारी।
मिनट भर उसके पैरों को हम सहला नहीं सकते।

जिस  तरह प्रसव  वेदना  से  विलख  रोई थी माँ।
उस तरह पीड़ित हो हम कभी छटपटा नहीं सकते।

माँ ने पिलाया अपना रुधिर सफेद कर हमको।
ठंढे मन से माँ को पानी तक पिला नहीं सकते।

चंदन औ गंगाजल मान मल-मुत्र हमारा माँ ने धोया।
माँ के बुढ़ापे का बास हम नाक तक ला नहीं सकते।

रात-रात भर जाग थपकियाँ दे सुलाती थी हमको।
घंटे-दो-घंटे भी जाग,माँ को  हम सुला नहीं सकते।

हमें सुलाने के लिए जाने माँ ने गाई कितनी लोरियाँ।
एक-दो भजन हम  उसके पास गुनगुना नहीं सकते।
                       सुजाता प्रिय

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