दूसरे से
सद्व्यवहार का,
हमें सदा ही चाहत है।
गलतियों,गलतफहमियों से भी
दिल बड़ा मर्माहत है।
सशंकित होकर,
उनके
सद्व्यवहारों
को,
देखते हैं हम ।
उनके सद्व्यवहार
में भी, क्या कोई स्वारथ है?
झाँकते नहीं कभी मन में अपने,
कि मेरे दुर्व्यवहारों से भी, कोई आहत है।
सुजाता प्रिय
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