सौ बार करूँ सजदे, सौ बार करूँ मिन्नत।
बस आपके कदमों में ऐ खुदा है मेरी जन्नत।
खुद सर
को झुका करके ,
हम बंदगी करते हैं।
दरिया में घिरी कश्ती ,
तेरे हाथ में
देते हैं।
अब तू ही पार लगा ,बढ़ा तू मेरी हिम्मत।
मालिक
तेरे वंदे. पर,
मुश्किल की घड़ी आई।
तेरे दिल की अदालत में,
रख ले मेरी
सुनवाई।
फरियाद मेरी सुन ले,दुश्मन से करा मिल्लत।
माना हम
काफिर हैं,
पर तुम तो रहमदिल हो।
हम राह भटक बैठे,
तुम तो देते
मंजिल हो।
तू ही हो मेरे रहवर ,कर तू ही सदा रहमत।
सुजाता प्रिय
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२३ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत-बहुत धन्यबाद स्वेता मेरी लिखी रचना को सोमवारीय विशेषांक में साझा करने के लिए।सप्रेम आभार।स्नेहाशीष।
ReplyDeleteसौ बार करूँ सजदे, सौ बार करूँ मिन्नत।
ReplyDeleteबस आपके कदमों में ऐ खुदा है मेरी जन्नत।
खुद सर
को झुका करके ,
हम बंदगी करते हैं।
दरिया में घिरी कश्ती ,
तेरे हाथ में
देते हैं।.... बेहतरीन सृजन सखी
सादर
धन्यबाद सखी! आभारी हूँ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना.... सखी
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी।
Deleteबहुत ही सुन्दर...बेहतरीन...
ReplyDeleteदरिया में घिरी कश्ती ,
तेरे हाथ में
देते हैं
अब तू ही पार लगा ,बढ़ा तू मेरी हिम्मत
दिल से निकली भावपूर्ण प्रार्थना
सादर धन्यबाद सखी।
ReplyDeleteबहुत कातर फ़रियाद।
ReplyDeleteसजदे में सुंदर सृजन सखी।
धन्यबाद सखी।
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