खामोशी की आवाज
सुपर्णा अपनी माँ के साथ पूर्वा से कोई किताब लेने आई।पुर्वा की माँ पुष्पा उन्हें बैठाकर बातें करने लगी।बात-चित के दौरान उन्होंने कहा _क्या कहूँ सुनीता बहन मैं तो इसकी खामोशी से परेशान हूँ।कुछ बोली ही नहीं कि क़्यों यह अजीत सर के क्लास में नहीं जाना चाहती?
आप कभी बेटी की बात सुनना चाहेंगी तब न वह कुछ बोलेगी बहनजी ! जब यह कुछ बोलना चाहती है तो आप इसे डाटकर खामोश कर देती हैं।तब यह कुछ बोलेगी कैसे?
हम तो अपने ही बच्चों को न डाट सकते हैं , रोक सकते हैं , समझा सकते हैं।पुष्पा ने समझाते हुए कहा।
लेकिन जब हमारे बच्चों की गलती रहेगी तब न। हमारी बच्ची को कोई छेड़ता है , कोई कुछ बुरा-भला कहता है इसमें इनकी क्या गलती । पहले हमें अपने बच्चों की बातें तो सुननी चाहिए।उसे क्या परेशानी है , उसका समाधान ढुंढना चाहिए , उसका बचाव और सुरक्षा करनी चाहिए।
तो क्या मैं इसकी सुरक्षा नहीं करती ? पुष्पा ने झट- से पूछ लिया।
सुनीता ने झिझकते हुए कहा -जब आप इसकी समस्या ही नहीं सुनतीं तो सुरक्षा कैसे करेंगी भला।आपको यह बताना चाही थी कि कुछ लड़के स्कूल जाते समय रास्ते की गुमटी पर खड़े होकर इन्हें छेड़तें हैं। लेकिन आप ने इसे ही डाट दिया कि तुम उधर से जाती क़्यों हो ? अब से ऐसी कोई शिकायत सुनी तो मैं तुम्हें स्कूल जाना बंद करा दूंगी।ऐसे मे यह अपने मन की बातें कैसे बताएगी आपको ? यह बात जब सुपर्णा ने मुझे बताया तो मैं स्वयं दो - चार दिन इनके पीछे जाकर सारी बात को समझी।फिर एक दिन गुमटी बाले को सारी बातें बताई , तो पहले उसने स्वयं उन्हें वहाँ खड़ा रहने के लिए मना किया और जब वे नहीं माने तो उसके अभिभावकों से उनकी शिकायत की । तब वे वहाँ खड़ा होकर फब्तियाँ कसना छोड़ दिए। अगर हम असमाजिक तत्वों के खिलाफ आवाज नहीं उठाएंगे तो उनका मनोबल बढ़ता जायेगा और हमारी बच्चियाँ यहाँ मानसिक रूप से प्रताड़ित होकर भयभीत होती रहेंगी। हमें इन्हें पूर्ण रूपेण निडर और साहसी बनाना चाहिए।
लेकिन यह अजीत सर के क्लास में क़्यों नहीं जाती?वहाँ तो सर खुद खड़े रहते हैं। वहाँ तो इस तरह की बातें नहीं हो सकती।पुष्पा ने झुंझलाते हुए कहा।
यह आप कैसे कह सकती है बहनजी कि वहाँ इस तरह की बातें नहीं हो सकती ? सुनीता ने बताया।वहाँ भी कुछ इसी तरह की बातें हैं ।अजीत सर होमवर्क नहीं बनाने या कोई गलती करने पर सजा स्वरूप लड़कियों को क्लास से बाहर खड़ी कर देते हैं।फिर उसे डाटने का बहना कर उससे छेड़-छाड़ करते हैं।यही कारण है कि लड़कियाँ उनसे ट्यूशन नहीं पढ़ना चाहतीं।पूर्वा के साथ भी ऐसा ही हुआ है।उसने सारी बातें मेरी बेटी को बताया और उसने मुझे।एक बार तो मुझे लगा कि सारी बातें सुनकर सुपर्णा की तरह आप मुझे भी न डाट कर खामोश कर देंगी । लेकिन मैं इन सभी बातों से आपको अवगत कराना चाहती थी,सो कर दी ।अब आगे आपकी अपनी मर्जी।इतना कहते हुए सुनीता उठकर चलती बनी।
पुष्पा ठगी - खड़ी थी।
हाँ बहू ! सुपर्णा की माँ ठीक कह रही हैं । पूर्वा की दादी अपने कमरे से निकलती हुई बोली । बच्चों की बातों को सुनना समझना चाहिए ।न कि उसे ही दोषी मानकर खामोश कर दो या फिर डाँटने- पिटने लगो।मैं भी जब कभी भी पूर्वा की देख - भाल करने के लिए कहा तुमने उसकी डाँट - फटकार की ।जब वह छोटी-सी थी तो पड़ोस के लड़के को उसे भींचकर चुमते देखा था तो उसके पास पूर्वा को नहीं रहने देने की सीख दी ।लेकिन तुमने इस नादान को ही घर लाकर खूब पीटा।इसमें इस बेचारी की क्या गलती थी ।यह तो उसकी दिन इन हरकतों को समझती भी नहीं थी।
पुष्पा अपनी सारी भूलों पर पाश्चाताप से गड़ी जा रही थी , जिनके लिए वह सिर्फ पूर्वा को ही दोष देकर उसे खामोश करती रही।
अचानक वह एक दृढ़ निश्चय के साथ उठी और पूर्वा से विनित स्वर में बोली - पूर्वा!आज अंतीम बार अजीत सर के क्लास जा।
पूर्वा ने सिहरते् हुए कहा - लेकिन मैंने आज वहाँ का होमवर्क नहीं किया है मम्मा।
मैं यही तो चाहती हूँ मेरी रानी बिटिया! पुष्पा ने उसे दुलारते हुए कहा ।आज मैं उन सभी बातों की आवाज बन जाना चाहती हूँ , जिनके लिए मैं आजतक तुम्हें खामोश करती रही।
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आज अजीत सर को फिर एक मौका मिला।पूर्वा ने आज होमवर्क बिलकुल नहीं किया था।सजा के तौर पर उसे बाहर खड़ा कर दिया गया । सभी विद्यार्थियों को कुछ प्रश्नों को हल करने के लिए दे दिया गया। फिर क्या हमेशा की तरह वे पूर्वा के पास पहुँच गए। डाँटते हुए उसके गाल खींचे।अपनी लाल लाल आँखों से उसकी आँखों में झाँकते हुए कुछ बुदबुदाए और उसकी कमर में हाथ डाला।इतने में कुछ खड़खड़ाहट -सी महसूस हुई।उनहोंने बगल की झाड़ियो की ओर देखा।झाड़ी के पीछे से मुहल्लेवाले की महिलाएँ जिनकी बेटी या तो अभी यहाँ पढ़ रहीं थीं या पहले पढ़ चुकीं थी,सभी घरेलु हथियारों से लैस उनकी ओर बढ़ी आ रहीं थीं । -देखते -ही-देखते उनपर बेलन कलछुल चिमटे मथानी और झाड़ुऔं से प्रहार होने लगा।पुष्पा उनकी पिटाई करती हुई कह रही थी-कमीने,मक्कार तूने तो गुरू- शिष्य के रिस्तों को भी दागदार कर दिया।मैं समझती थी बुजुर्ग हो ।बच्चों की देख - भाल अच्छी तरह करोगे लेकिन तू तो संन्यासी की वेस में भेड़िया निकला ।आज तुम्हारी जुबान काटकर तुम्हें हमेशा के लिए खामोश कर दूंगी।
उनके विद्यार्थीगण विडियोग्राफी करनेे में लगे थे।तभी पुलिस की गाड़ी आकर रुकी और लोगों ने अजीत सर को पुलिस के सुपुर्द कर दिया।
सुजाता प्रिय
उव्वाहहहहहह
ReplyDeleteग़ज़ब..
अनुकरणीय..
सादर..
जी शिक्षाप्रद रचना।
ReplyDelete,जी नमस्ते। मेरी रचना को सोमवारीय विशेषांक में साझा करने के लिए बहुत-बहुत धन्यबाद भाई।आभारी हूँ।
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ReplyDeleteबहुत खूब सुजाताजी। बहुत प्रेरक कथा है। सचमुच बच्चे की खामोशी में कुछ तो संदेहास्पद होता है । ऐसेही हम समाज के छुपे भेड़ियों की पहचान कर सकते हैं। हार्दिक बधाई और शुभकामनायें ।
ReplyDeleteजी कर्णपट बहन! समाज में बहुत सारे बच्चे ऐसे हैं जो डाट पड़ने के डर से अपनी आपबीती माँ-बाप को साझा नहीं कर पाते ।माँ-बाप भी अपने बच्चों पर तो निगाहें रखते हैं परंतु बच्चों पर अत्याचार करने वाले शैतानों को नहीं पहचान पाते।
ReplyDeleteक्षमा करें रेणु बहन!
ReplyDeleteप्रेरणादायक कहानी लिखी आपने सखी।यह कड़वी सच्चाई है जिसे कभी-कभी माँ-बाप समझ नहीं पाते हैं।मेरी एक कहानी है "और मुस्कुराहट लौट आई"इसी विषय पर लिखी है। बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी अनुराधा जी! ऐसे कुछ उदारण मेरे पास है कि बच्चों के मनोभावो को , बच्चों के परेशानियों को समझ नहीं पाते और बचे मानसिक व शारीरिक रूप प्रताड़ित होकर घुटते रहते हैं।हमें इस विषय पर जागरुक होना चाहिए।आप भी इस विषय पर कहानी लिखीं है यह जानकर अत्यंत खुशी हुई।सादर धन्यबाद सखी।
ReplyDeleteप्रेरणादायक कहानी ,समाज को ऐसी प्रेरणा की बहुत ही आवश्यकता हैं ,सादर
ReplyDeleteजी कामिनी बहन सादर धन्यबाद।
Deleteबहुत सुन्दर.. प्रेरणास्पद कहानी....
ReplyDeleteखामोशी का कारण समझना भी जरूरी है
बहुत-बहुत धन्यबाद सुधा बहन।सादर।
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