Tuesday, August 12, 2025

चोर

बच्चों की उपस्थिति लेते ही कक्षाचार्य जी ने सभी बच्चों को अपने गृहकार्य की पुस्तिका जमा करने को कहा। रिंकू अपनी पुस्तिका के साथ एक सुंदर कलम  लेकर आगे बढ़ा ।सभी बच्चे चोर-चोर के नारे लगने लगे।
     रिंकू बड़ी मासूमियत से सहमते हुए कहा -आचार्य जी! आपकी कलम मैंने चोरी नहीं की। 
     उसका सहपाठी संजीव ने कहा तुमने चोरी की थी ।तभी तों डर से कल विद्यालय नहीं आया। कल आचार्य जी ने बताया की उनकी कलम गायब है।तो हम सब समझ गए कि उसे तुमने ही गायब किया है।
       नहीं मेरे दोस्त ! मैंने कलम चोरी नहीं की आचार्य जी ने पुस्तिका जांँच के बाद मेरी पुस्तिका में  स्वयं कलम छोड़ दी थी ।और,मैं कोई भय से विद्यालय नहीं आया। बल्कि कल मेरी तबीयत बिगड़ गई थी। शाम में कुछ  ठीक लगा तब गृह-कार्य करने गया। उनकी खुली कलम मेरी पुस्तिका में रखी थी।
 मैंने मांँ को बताया तो मांँ ने कहा- इस कलम को तुम आदर के साथ आचार्य जी को दे दो। "किसी व्यक्ति का सामान गलती से भी आ जाए ,तो उसे अपने पास नहीं रखना चाहिए ।" इसलिए मैं इसे आज लेते आया ।
  कक्षाचार्य जी ने झट कुर्ते की जेब में हाथ डाला और उसका ढक्कन निकालकर  कलम में लगाया । फिर मुस्कुराते हुए कहा- चोर रिंकू नहीं बल्कि भुलक्कड़ मैं स्वयं हूँ। क्योंकि अपनी कलम कहीं भी छोड़ देता हूंँ । सचमुच यह कलम मैं इसकी पुस्तिका में छोड़ दिया था और ढूंढते रहा तुम्हारे साथ-साथ तुम्हारी मांँ को भी बहुत धन्यवाद देता हूंँ , जिन्होंने अपने बेटे को इतने अच्छे संस्कार दिए हैं कि "किसी का सामान गलती भी आ जाए तो उसे अपने पास नहीं रखना चाहिए।"
                           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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