हर हर बम-बम बोलकर,जपते जाओ नाम ।।
सबके ये संकट हरे,सबके पालनहार।
जग वालों पर वे सदा,करते हैं उपकार।।
मस्तक पर है चंद्रमा,जटे गंग की धार।
बाघम्बर ओढ़े बदन,गले सर्प की हार।।
एक हाथ त्रिशूल है,कमंडल दूजे हाथ ।
नतमस्तक होकर सदा,भक्त झुकाते माथ।।
मंदिर में विराजते,माँ गौरी के संग।
सारा जग हैं घूमते, चढ़ बसहा के अंग।।
खाते भांग सदा चबा,लगाते हैं विभूत।
हैं कार्तिक और गणपति, दोनों इनके पूत।।
आदि औ अंत रहित हैं,महिमा अपरंपार।
सृष्टि रचैया आप हैं ,मान रहा संसार ।।
परमेश्वर व परमपिता,पर हित परमानंद।
आपके चरण में प्रभो,सबको है आनंद ।।
आपकी भक्ति की सदा,मन में इच्छा प्रबल।
जग की रक्षा कीजिए, जीव हैं सभी विकल।।
डमरू आप बजाइए, नाद उठे सब ओर।
सब जन हर्षित हो यहांँ, नाच उठे मन मोर ।।
हे शंकर कैलाशपति, हे गौरी के नाथ।
हमारे गृह पधारिए, कार्तिक-गणपति साथ।।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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