कर्ज (दोहे)
संतुष्ट भाव से रहें, नहीं लीजिए कर्ज।
जितना कर्जा खाइए,बढ़ता जाता मर्ज।।
कर्ज लोगों को करें,जीवन में कंगाल।
कर्ज न कोष भर सकता,चुकता ले खंगाल।।
किनारा कर्ज से करें,रहिए इससे दूर।
कर्ज लेकर न खाइए,चुकाना है जरूर ।।
कर्जा लेते लोग हैं, हरदम मुँह को घाल।
कर्ज चुकाने की घड़ी,मन में उठे मलाल।।
कर्जा लेने से रहें,मन में सदा विषाद।
कर्जा से झोली कभी, होय नहीं आवाद।।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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