दीपमालिका (दोहे)
सजी है दीपमालिका,घर आँगन और द्वार।
जगमग जगमग कर रही, रोशन है संसार।।
दीपमालिका देख लगे,सजे हुए हैं फूल।
भीनी-भीनी महक भी,देता मन अनुकूल।।
दीप उजाला कर रहा,हो जाए तम दूर।
मिट गया अंधेर यहाँ, रोशनी है भरपूर।।
दीपों की लड़ियांँ कहे,एकता रखो पास।
मन का तिमिर दूर करो, हृदय में रख उजास।।
दीपों से सीखें सभी, पर-हित का अहसास।
स्वयं है जलकर देता, दूसरों को प्रकाश।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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