बलम परदेसिया
हमें अकेला छोड़ गांँव में,गए बलम परदेश।
पाती लिखकर रोज भेजते,मुझको यू संदेश।
मैं तो यहांँ कमाता हूंँ प्यारी,रुपए बीस हजार।
आकर तुम्हें घुमाऊंँगा,ले जाकर मीना बाजार।
मैं बिचारी,विरह की मारी,लगी देखने सपने।
शायद आने वाले हैं,अच्छे दिन कुछ अपने।
आए प्रीतम बैठ पलंग पर,सुलगाये सिगरेट।
मुंँह से धुआंँ उड़ा कर बोले,सुन बुद्धु दी ग्रेट।
रोटी-भात मुझे न भाता,खिला पिज्जा-बर्गर।
गुटका-खैनी,पान-मसाला खाता हूंँ,जी भर कर।
भूल गए कमीज व कुर्ते,भूल गये गमछी-धोती।
आधी टांग की पैंट पहन-कर,टांग दिखाते मोटी।
खड़ा किए जुल्फी अपनी,आधा जेल लगाकर।
आधा सिर चिकना करवाये,उस्तरे से मुड़ाकर।
लस्सी-शरबत छोड़,पीते कोल्ड ड्रिंक्स गटगट।
चूरमा चबेना भूल गए,खाते हैं वे मैगी चटपट।
नमस्कार-प्रणाम करना भूले,बोलते हाय-हैलो।
गाय-भैंस को देख बोलते,हाऊ आर काउ-बफैलो।
हाय विधाता मैं क्या जानूँ ,जाएंँगे बलम परदेस।
सुसंस्कार को भूलकर वे, बनाएंँगे गीदड़ वेश।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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