सीख
रश्मि नित पढ़ाई करने के बाद अपनी सहेलियों के साथ खेलने में मग्न हो जाती।आजकल उसका मुख्य खेल था तितली पकड़ना। उसकी फुलवारी में रंग-बिरंगे फूल खिलते ।उन फूलों का रस चूसने के लिए उन पर रंग-बिरंगी तितलियाँ मंडराती रहती।वे फूलों पर बैठती नहीं कि बच्चे दवे पांँव चल पड़ते उन्हें पकड़ने।थोड़ी-सी कोशिश के बाद किसी के साथ में नीली,तो किसी के हाथ में पीली। किसी के हाथ में हरी,तो किसी के हाथ में लाल और किसी के हाथ में काली तितली आ जाती। फिर क्या ! अपनी-अपनी तितलियों के पंख पीछे कर किसी कुशल प्रतिभागियों से एक-दूसरे से लड़ाते।माता पिता के लाख मना करने पर भी अपने इस प्रिय खेल को नहीं छोड़ते। एक दिन जब रश्मि तितली पकड़ रही थी तो उसके पिताजी ने भरे प्यार से उसे अपने पास बुलाया और बिना कुछ बोले उसके दोनों हाथ पीठ की ओर घुमाकर पकड़ लिए। रश्मि कुछ समझी नहीं।उसने कहा-पिताजी!मेरे हाथ छोड़िए,मैं खेलने जाउंँगी।लेकिन पिताजी ने उसके हाथ नहीं छोड़ा।उसकी मांँ ने खाना खाने के लिए उसे पुकारा। फिर भी पिताजी उसके हाथ में नहीं छोड़े। बाहर फेरी वाले ने आवाज लगाई। रश्मि का मन फेरी वाले का सामान देखने के लिए ललक उठा।बहुत करने पर भी पिताजी ने हाथ नहीं छोड़े। इतनी देर तक हाथ पीछे बंधे रहने से उसके हाथ में दर्द होने लगा।रश्मि ने गिड़गिड़ाते हुए कहा -हे मेरे हाथ छोड़ दें बहुत दर्द हो रहा है। पिताजी ने उसके घर छोड़ दिया।फिर उसके हाथ में पकड़े तितली की ओर इशारा करते हुए कहा-देखो बेटा!जिस प्रकार हाथ पीछे करने से तुम्हारे हाथ दुखने लगे,उसी प्रकार तितलियों के पंख पीछे करने से उन्हें दर्द का एहसास होता होगा। इतनी देर मैंने तुम्हारे हाथ बकड़े तो तुम्हें खेलने का मन करने लगा,भूख लगी, फेरी वाले का सामान देखने का मन करने लगा।तो सोचो तुम लोग इतनी देर तक तितलियों को पकड़े रहते हो,तो क्या इस बीच उनका मन कहीं जाने या घूमने का नहीं करता होगा ? उन्हें भी भूख लगी लगती होगी। पिताजी ने उसे समझाते हुए कहा ।अकारण किसी को बंधनों में नहीं जकड़ना चाहिए। स्वतंत्रता हर प्राणी का जन्मसिद्ध अधिकार है। हर प्राणी अपना जीवन अपने तरीके से जीने के लिए स्वतंत्र हैं। सबकी इच्छाएं अलग-अलग होती हैं ।रश्मि को सीख मिल गयी। उसने किसी भी जीव को कष्ट नहीं देने का संकल्प लिया।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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